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चिबुक
( ११७ )
चैत्ररथपर्व
चिबुक-नन्दिनी गौद्वारा उत्पादित एक म्लेच्छ जाति द्वारा मूर्छित होना (भीष्म० ८४ । ३१) । चित्रसेनके (आदि. १७४ । ३८)।
साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ११०। ८-९, भीष्म० १११ । चिरकारी-महर्षि गौतमका एक पुत्र, जो प्रत्येक कार्यपर
५३-५५)। धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन (द्रोण. अधिक देरतक विचार करनेके कारण उसे बहुत देरसे
१०। ५४) । अनुविन्दके साथ युद्ध (द्रोण. १४ । पूर्ण करता था, इसीसे चिरकारी कहलाता था। पिताद्वारा
४८)। इनके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ४५)। अपनी माताके वधका आदेश पानेपर उसका विचार
द्रोणाचार्यद्वारा इनकी पराजय (द्रोण० १२५ । ६८करना (शान्ति २६६ । ३---.४३)। पिताके चरणों- १) । दुर्योधनद्वारा इनका वध ( शल्य. १२। में नतमस्तक होना (शान्ति० २६६ । ६.)। पिता
३१-३३)। व्यासजीके आवाइन करनेपर गङ्गाजीके द्वारा उसका अभिनन्दन (शान्ति. २६६ । ६७)। जलसे ये भी प्रकट हुए थे ( आश्रम० ३२।१२)। पिताके साथ स्वर्गगमन (शान्ति० २६६ । ७८)।
इनके दो नाम और मिलते हैं--सात्वत और वार्ष्णेय । चिरान्तक-गरुड़की प्रमुख संतानों से एक ( उद्योग० चेदि-एक प्राचीन देश, जिसे उपरिचर वसुने जीता था १०१ । १३)।
और इसपर शासन किया था ( आदि० ६३ । १-२)। चीन-(१) नन्दिनी गौद्वारा उत्पादित एक म्लेच्छ जाति
चेदिदेशकी विशेषता (आदि. ६३ । ८)। यहींका (आदि. १७४ । ३८)। (२) एक देश, जहाँके
राजा शिशुपाल था । नकुलकी पत्नी करेणुमती भी यहीकी लोग युधिष्ठिरको भेंट देनेके लिये आये थे (सभा. राजकुमारी थीं (आदि० ९५ । ७९)। शिशुपालकी ५१ । २३)।
मृत्युके पश्चात् उसके पुत्र धृष्टकेतुको चेदिदेशका राजा चीरक-एक देश या जनपद, जिसे कर्णने जीतकर दुर्योधन
बनाया गया ( सभा० ४५। ३६ )। राजा नलके
समयमें सुबाहु इस देशके राजा थे जिनके यहाँ दमयन्तीने के लिये कर देनेवाला बना दिया था (कर्ण० । १९)।
सुखपूर्वक निवास किया था (वन०६५। ४४-७६)। चीरवासा-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो क्रोधवश नामक
चेदिराज धृष्टकेतु एक अक्षौहिणी सेना साथ लेकर दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि. ६७।६१)। पाण्डवोंकी सहायतामें आये थे (उद्योग. १९ । ७)। (२) एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें उपस्थित हो भगवान् । इस देशके क्षत्रिय वीर भगवान् श्रीकृष्णकी सलाइसे धनाध्यक्षकी सेवा करता है (सभा० १०116)। चलकर शत्रुओंको बंदी बनाते और मित्रोंको आनन्दित चीरिणी-एक नदी, जिसके तटपर वैवस्वत मनुने भीगे चीर करते थे ( उद्योग. २८ । ११)। भारतके प्रमुख और जटा धारण किये तपस्या की थी (वन० १८७। जनपर्दोर्मे 'चेदि की भी गणना है (भीष्म० ९४०)।
चैत्य-देववृक्ष ( आदि० १५० । ३३)। चुलुका-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा पीती है (भीष्म. ९ । २०)।
चैत्यक-मगधकी राजधानी गिरिव्रजके समीपका एक पर्वत
जो मगधवासियोंको अत्यन्त प्रिय था। बृहद्रथ-परिवारके चूचुक-दक्षिण भारतकी एक म्लेच्छ जाति (पान्ति.
लोग इसकी देवताकी भाँति पूजा किया करते थे (सभा० २०७ । ४२)।
२१।१-५)। चूचुप-दक्षिण भारतका एक जनपद ( उद्योग० १४०। २६)।
चैत्ररथ (१) एक वन, जहाँ राजा ययातिने विश्वाची' चेकितान-पाण्डव-पक्षका एक महारथी, जो वृष्णिवंशी
अप्सराके साथ रमण किया था ( आदि०७५ । ४८)। यादव था और द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि.
तपस्याके लिये जाते समय राजा पाण्डु अपनी दोनों
पत्नियोंके साथ यहाँ आये थे (आदि. ११८।१८)। १८५। ११; उद्योग० १७१ । १८; भीष्म० ८४ । २०)। राजा युधिष्ठिरके मयनिर्मित सभामें प्रवेश करते
द्वारकापुरीका एक वन, जो इसी (चैत्ररथ ) नामसे समय ये भी उनकी सेवामें उपस्थित थे (सभा०४।
प्रसिद्ध था और ब्रह्माजीके अलौकिक उद्यानकी भाँति २७ ) । इन्होंने युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें
शोभा पाता था (सभा० ३८ । पृष्ठ ८१२, कालमर)। उपस्थित हो अभिषेकके समय उनके लिये तरकस भेंट
(२) भरतवंशीय महाराज कुरुके द्वारा वाहिनीके किया था (सभा० ५३ । १)। प्रथम दिनके संग्राममें
गर्भसे उत्पन्न एक राजकुमार (आदि० ९४ । ५०)। सुशर्माके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म ४५। चैत्ररथपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ६०-६२)। कृपाचार्यको मूर्छित करके स्वयं भी उनके १६५ से १८२ तक)।
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