________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
केवला
कैलास
७१-७२)। केरल-नरेशने राजा युधिष्ठिरको चन्दन, केसरी-एक वानरराज, जिनके क्षेत्रभूत अञ्जना देवीके अगुरु, मोती, वैदूर्य और चित्रक नामक रत्न भेंट किये गर्भसे वायुद्वारा हनुमान्जीका जन्म हुआ था (वन. (सभा० ५१।४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ, ८६१, १४७।२७)। कालम १)। कर्णने दिग्विजयके समय यहाँके राजाको ।
कैकेयी-(१) पूरुवंशीय महाराज अजमीढ़की पत्नी जीता और दुर्योधनके लिये करद' बनाया था (वन.
(आदि० ९५। ३७ )। (२) महाराज दशरथकी पट२५४ । १५-१६)।
रानी। भरतकी माता (वन २७४ । ८)। इनका केवला-एक नगरी, जिसे कर्णने अपनी दिग्विजययात्रामें महाराज दशरथसे भरतके लिये राज्य और रामके लिये जीता था (वन० २५४ । १०-११)।
वनवासका वरदान माँगना (वन० २७७।२६)। इनका केशयन्त्री-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य०४६।१७)। भरतको राज्य ग्रहण करनेके लिये कहना (वन०२७७ । केशव-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम । इसकी निरुक्ति । ३२)। (३) सूतराज केकयकी छोटी पत्नी मालवी(शान्ति० ३४१ । ४८-४९)। केशव नाम महाभारत
के गर्भसे उत्पन्न सुदेष्णा, जो महाराज विराटकी रानी में अनेक स्थलोंपर प्रयुक्त हुआ है ( यथा-भीष्म
थी(विराट. १६। दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ १८९३, कालम २५ । ३१, २६ । ५४, २७ । १३४ । १४, ३५ ।।
१)।(केकयदेशके राजाओंकी सभी कुमारियाँ कैकेयी ३५, ४२ । ७६ आदि)।
कही गयी हैं । जैसे सार्वभौमकी पत्नी और जयत्सेनकी माता
सुनन्दा (आदि० ९५ । १६)। परीक्षित्-पुत्र भीमसेनकेशिनी-(१) एक अप्सरा, जो प्राधाके गर्भसे देवर्षि
की धर्मपत्नी एवं प्रतिश्रवाकी माता कुमारी (आदि० कश्यपद्वारा उत्पन्न हुई है ( आदि० ६५। ५०)।
__ ९५। ४३) इत्यादि । (२) महाराज अजमीढकी तृतीय पनी । इनके गर्भसे अंजमीढद्वारा जह, व्रजन एवं रूपिण नामके तीन कैटभ (१) एक महान् असुर, जो मधुका भाई एवं सहचर
था। इन दोनोंकी उत्पत्ति भगवान् विष्णुके कानोंकी पुत्रोंका जन्म हुआ था ( आदि० ९४ । ३२)। (३)
मैलसे हुई थी । भगवान्ने मिट्टीसे इनकी आकृति दमयन्तीकी दासी। इसका बाहुक नामधारी नलके साथ
बनायी थी । इनकी मूर्तिमें वायुके प्रविष्ट हो जानेसे ये सप्राण संवाद (वन० ७१ अध्याय)। इसके द्वारा बाहुककी परीक्षा ( वन० ७५ अध्याय) । (४) उमादेवीकी
हो गये थे। इसके साथीका मधु और इसका कैटभ नाम
होनेका कारण (सभा०३८ । दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७८३)। अनुगामिनी सहचरी (वन० २३१ । ४८)। (५)एक सुन्दरी कन्या, जिसके लिये विरोचन और सुधन्वामें
भगवान् विष्णुद्वारा इन दोनोंका वध (सभा० ३८ । पृष्ठ संवाद हुआ था (उद्योग० ३५। ५-१५)।
७८४)। मधुसहित कैटभकी उत्पत्तिका वर्णन
नाभिकमलपर भगवत्प्रेरणासे जलकी दो बूंदें पड़ी थीं, केशी-(१)एक दानव, कश्यपपत्नी दनुका पुत्र (आदि०
जो रजोगुण और तमोगुणकी प्रतीक थीं । भगवान्ने उन ६५ । २३)। इसीने भगवान् विष्णुके साथ तेरह दिनों
दोनों बूंदोंकी ओर देखा । एक मधु और दूसरी बूंद तक युद्ध किया था ( वन० १३४ । २०)। इसके
कैटभके आकारमें परिणत हुई ( शान्ति० ३४७ । द्वारा देवसेनाका अपहरण (वन० २२३।९)। इसका
२५-२६) । भगवान् हयग्रीवद्वारा इनका वध (शान्ति. इन्द्रसे पराजित होकर भागना ( वन० २२३ । १५)।
३४७ । ६९-७० ) । (२)एक दानव, जो कभी (२) एक दैत्य, जो कंसका अनुगामी था ।
इस पृथ्वीका अधिपति था; किंतु इसे छोड़कर चल इसके शरीरमें दस हजार हाथियोंका बल था। यह
बसा (शान्ति० २२७ । ५३)। घोड़ेकी ही आकृतिमें रहता था। कंसकी प्रेरणासे श्रीकृष्णको मारने आया था; परंतु स्वयं ही पुरुषोत्तम भगवान्
कैतव-(१) शकुनिपुत्र उलूक (आदि० १८५ । २२)। श्रीकृष्णके हाथों मारा गया (सभा० ३८ । पृष्ठ ८०१
(२) एक भारतीय जनपद (भीष्म० १८ । १३)। कालम १)।(जिस स्थानपर यह मारा गया, वह वृन्दावन- कैरातपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय ३८ से में आजकल केशीघाटके नामसे विख्यात है।) श्रीकृष्णने ४. तक)। केशीको धर्मपूर्वक मारा था, यह उन्होंने शपथपूर्वक कैलास-एक पर्वत, जो कुबेर तथा भगवान् शिवका निवासघोषित किया है ( आश्व० ६९ । २३)। इनके द्वारा स्थान है ( वन० १०९ । १६-१७; बन० १४१ । केशिवधकी चर्चा (मौसल० ६।१०)।
११-१२)। यहाँ श्वेतकिने भगवान् शिवकी प्रसन्नताके केसर-शाकद्वीपका एक पर्वत, जहाँकी वायुमें केसरकी लिये उग्र तपस्या की (आदि० २२२ । ३६-४०)। सुगन्ध भीनी रहती है (भीष्म० १३ | २३
नौसमविउत्तर मैनाक है, जहाँ मयासुरने मणिमय भाण्ड म. ना०१२
For Private And Personal Use Only