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क्रोधवश
रूपमें इस भूतलपर उत्पन्न हुआ था ( आदि० २३ । ६)। यह एक श्रेष्ठ रथी था ( उद्योग० १७१ । ६७ । ४६)।
१०)। भगदत्तद्वारा इसकी दाहिनी भुजापर गहरा क्रोधवश-राक्षसोंके एक गणका नाम । इनकी माता कश्यप
आघात (भीष्म. ९५ । ७३)। इसका लक्ष्मणके साथ पत्नी क्रोधा या क्रूरा थी (आदि०६५। ३२)। ये ही युद्ध (द्रोण० १४ । ४९)। द्रोणके साथ युद्ध (दोण. कुबेरके सौगन्धिक कमलोंवाले सरोवर ( या नलिनी) की, २१ । ५०, ५६)। इसके रथके घोड़ोंका रंग (द्रोण. जिसका नाम अलका था, रक्षा करते थे । भीमसेनने इनके २३ । ६)। लक्ष्मणद्वारा इसका वध (कर्ण० ६। साथ युद्ध करके इन्हें परास्त किया था (वन० १५४ । २६-२७)। २०-२१)। इन्होंने धनाध्यक्ष कुबेरको भीमसेनके बल- क्षत्रधर्मा-धृष्टद्युम्नका पुत्र अर्धरथी ( उद्योग० १७१ । पराक्रमका वृत्तान्त बताया था (वन० १५४ । २५)। ७)। इसके रथके घोड़ोंका रंग (द्रोण० २३ । ५)।
ये रावणकी सेना में भी सम्मिलित थे (वन० २८५। २)। द्रोणाचार्यद्वारा इसका वध (द्रोण. १२५ । ६६)। क्रोधशत्रु-एक विख्यात दानव, जो काला नामक कश्यप- क्षत्रवर्मा-धृष्टद्युम्नका एक वीर पुत्र (द्रोण० १० । ५३)। पत्नीका पुत्र था ( आदि० ६५ । ३५)।
जयद्रथके साथ युद्ध (द्रोण० २५ । १०-१२)। क्रोधहन्ता-(१) कश्यपपत्नी कालाके चार पुत्रोंमेंसे एक आचार्य द्रोणद्वारा इसका वध (द्रोण. १८६ । ३४)। प्रसिद्ध दानव (आदि. ६५। ३५)। इसे वृत्रासुरका क्षितिकम्पन-स्कन्दका सेनापति (शल्य० ४५ । ५९)। छोटा भाई कहा गया है। यही राजा दण्डके रूपमें उत्पन्न
क्षीरवती-एक पुण्यतीर्थ, वहाँ स्नान करके देवताओंके हुआ था (आदि० ६७ । ४५)। (२) पाण्डवपक्षीय राजा सेनाबिन्दुका दूसरा नाम ( उद्योग० १७१ ।
पूजनमें लगा हुआ मनुष्य वाजपेय-यज्ञका फल पाता है
(वन० ८४ । ६८-६९)। २०)। क्रोशना-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । १७)। क्षीरसागर (क्षीरनिधि)-इसकी उत्पत्ति ( उद्योग० कोष्टा-यदुके पुत्र ( अनु० १४७ । २८)।
१०२।४)। अन्य नामोंद्वारा इसकी चर्चा-क्षीरोद
(आदि० २ । ९१, भीष्मः १०।११; शान्ति. फ्रौञ्च-एक पर्वत, जिसे स्कन्दने विदीर्ण किया था (शल्य.
३३६ । २३; शान्ति० ३४० । ४५, अनु०१४ । २४०)। ४६ । ८४)।
क्षीरोदधि (शान्ति० ३३६ । २७)। क्रौञ्चद्वीप-एक प्रसिद्ध द्वीप, इसका विशेष वर्णन (भीष्म०
क्षीरी-उत्तर कुरुवर्षके कुछ वृक्ष, जो सदा षडविध रसोंसे १२ । १७-२३)।
युक्त अमृतके समान स्वादिष्ट दूध बहाते रहते हैं। उनके क्रौञ्चनिषूदन-सरस्वती-सम्बन्धी तीर्थ, जहाँ सरस्वतीमें स्नान ।
फलोंमें इच्छानुसार वस्त्र और आभूषण भी प्रकट होते हैं करनेसे विमानलाभ होता है (वन० ८४ । १६०)। (भीष्म० ७॥ ४-५)। क्रौञ्चपदी-एक तीर्थ, जहाँ पिण्डदान करके मनुष्य तीन क्षक-एक देश और वहाँके निवासी, ये युधिष्ठिरके लिये
ब्रह्माहत्यासे मुक्त हो जाता है ( अनु० २५ । ४२ )। भेंट लाये थे (सभा० ५२ । १५)। क्षुद्रकोंको साथ क्रौञ्चव्यूह-सेनाकी मोर्चाबंदीका वह प्रकार, जिसमें लेकर दुर्योधन शकुनिकी सेनाकी रक्षामें लगा था सैनिकोंको क्रौञ्च पक्षीकी आकृतिमें खड़ा किया जाता है । (भीष्म० ५१ । १६)। क्षुद्रक आदि देशोंके सैनिक भीष्मद्वारा क्रौञ्चव्यूहकी रचना (भीष्म० ७५ । १५- भीष्मकी आशाका पालन करते हुए अर्जुनके निकट चले गये २२)। युधिष्ठिरद्वारा उक्त व्यूहकी रचना (द्रोण. (भीष्म० ५९ । ७६)। भीष्मके पीछे द्रोणाचार्यके साथ ७।२५-२७ )।
रहकर क्षुद्रक भी शत्रुओंसे जूझनेके लिये चले थे (भीष्म क्रौञ्चारुणव्यूह-यह भी क्रौञ्चव्यूहका ही नामान्तर है।
८७।७)। परशुरामजीने पहले कभी क्षुद्रकोंका संहार इसका निर्माण धृष्टद्युम्नने किया था ( भीष्म० ५०। किया था (द्रोण० ७० । ११)। अर्जुनद्वारा क्षुद्रकोंका ४२-५७)
वध (कर्ण० ५। ४७)। भत्ता-विदुर ( उद्योग० ३३।२,६) ( देखिये विदुर)। क्षप-(१) एक प्रजापति, जो ब्रह्माजीके द्वारा मस्तकपर क्षत्रंजय-धृष्टद्युम्नका एक वीर पुत्र (द्रोण० १० । ५३)। धारण किये हुए उनके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। ब्रह्माजीके द्रोणाचार्यद्वारा द्रुपदके तीन पुत्रों (क्षत्रदेव, क्षत्रंजय छींकनेपर ये उनके मस्तकसे गिर पड़े थे (शान्ति.
तथा क्षत्रवर्मा ) का वध (द्रोण० १८६ । ३३-३४)। १२२ । १६-१७)। यही ब्रह्माके यज्ञके ऋत्विज हुए क्षत्रदेव-शिखण्डीका पुत्र (उद्योग० ५७ । ३२७ द्रोण. थे (शान्ति०१२२ । १७)। भगवान् रुद्रने इनको समस्त
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