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( ९५ )
गङ्गा
सुवर्णसे ही निर्मित हुआ था (द्रोण० ६१ । ३-४)। रहकर अर्जुनने भगवान् श्रीकृष्णकी सहायतासे अमिदेवको इनके यज्ञके दिव्य वैभवका वर्णन (द्रोण. ३१।। तृप्त किया था (आदि. ६१ । ४५) । पूर्वकालमें ५-११)।
पुरूरवा नहुष और ययाति भी यहीं निवास करते थे खङ्ग-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५। ६७)। (आदि० २०६ । २५ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। खङ्गी-भगवान् शिवका एक नाम (अनु० १७ । ४३)। (विशेष देखिये इन्द्रप्रस्थ)। खण्डखण्डा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६। खाण्डवायन-परशुरामजीकी दी हुई स्वर्णवेदीको खण्ड२०)।
खण्ड करके आपसमें बाँटनेवाले ब्राह्मणोंका नाम (वन० खनीनेत्र-सूर्यवंशी विविंशके ज्येष्ठ पुत्र, जो पराक्रमी होने ५७।१३)।
और अकण्टक राज्य पानेपर भी प्रजाके अनुरागभाजन न खाशीर-पूर्वोत्तर भारतका एक जनपद ( भीष्म हो सके । अतः राज्यसे उतार दिये गये ( आश्व० ४।
। ६-९)।
खिल-महाभारतके परिशिष्ट भाग हरिवंशका दूसरा नाम खर-(१) एक राक्षस, जो विश्रवाका पुत्र एवं शूर्पणखाका
(आदि० २। ८२-८३, आदि० ३७९-३८०)। सहोदर भाई था । इसकी माताका नाम राका था (वन. २७५। ४-८)। यह धनुर्विद्यामें विशेष पराक्रमी तथा
ख्याता-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । २०)। ब्रह्मद्रोही था (वन० २७५। १२)। रावण, कुम्भकर्ण और विभीषणकी तपस्याके समय ये दोनों भाई-बहन
गगनमूर्धा-कश्यप और दनुके वंशका एक विख्यात दानव उनकी सेवा करते थे (वन० २७५ । १२)। शूर्पणखाके
(आदि०६५ । २४)। यह पाँच केकय-राजकुमारोंमेंसे एककारण इसका श्रीरामसे बड़ा भारी वैर हो गया (वन०
के रूपमें उत्पन्न हुआ था ( आदि०६७।१०)। २७७ । ४२)। श्रीरामने तपस्वी जनोंकी रक्षाके लिये खर आदि चौदह हजार राक्षसोका संहार किया (सभा गङ्गा-देवनदी । वसुओंकी माता । भीष्मकी जननी । महर्षि ३८॥ २९ के बाद, पृष्ठ ७९४)। (२) राक्षसोंका एक
वशिष्ठके शाप और इन्द्रके आदेशसे आठ वसुओंका दल, जिसने अन्य दलोंके साथ वानर-सेनापर आक्रमण
गङ्गाजीके गर्भसे शान्तनुपुत्र होकर जन्म लेना (आदि. किया था (वन० २८५ । २)।
६७ । ७४) । गङ्गाजीका आधिदैविक रूप देवाङ्गनाके
तुल्य है, वे उसी रूपसे एक दिन ब्रह्माजीकी सभामें खरकर्णी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । २६)।
उपस्थित हुई । उस समय वायुके झोंकेसे उनके शरीरका खरजवा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका(शल्य० ४६ । २२)।
चाँदनीके समान उज्ज्वल वस्त्र सहसा कुछ ऊपरकी ओर खरी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ६)। उठ गया । उस अवस्थामें उनकी ओर देखनेके कारण खली-(१) भगवान् शिवका एक नाम (अनु० १७।। महाभिषको ब्रह्माजीके द्वारा मर्त्यलोकमें जन्म लेनेका शाप ४३)। (२) दानवोंका एक समुदाय, जिसे वशिष्ठजीने मिला और इन्हें भी उनके प्रतिकूल आचरण करनेके
अपने तेजसे दग्ध कर दिया (अनु० १५५ । २२)। लिये उनके साथ जानेका संकेत प्राप्त हुआ (आदि. खल-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल यहाँकी प्रजा ९६ । ४-८) । महाभिषका चिन्तन करती हुई गङ्गापीती है (भीष्म. ९।२८)।
का वहाँसे जाना और मार्गमें वसुओंसे उनकी उदासीका
कारण पूछना (आदि० ९६ । ९-१२)। 'वशिष्ठके खस-एक देश (द्रोण. १२१ । ४२)।
शापवश हमें मर्त्यलोकमें जन्म लेना पड़ेगा, वहाँ आप ही खाण्डव (वन)-यमुना-तटवर्ती एक वन, जिसे भगवान्
हमारी जननी हो' वसुओंकी गङ्गाजीसे प्रार्थना और इनका श्रीकृष्ण तथा अर्जुनकी सहायतासे अग्निदेवने जलाया था
इस प्रार्थनाको स्वीकार करना ( आदि० ९६ । १२इसकी रक्षाके लिये इन्द्रके प्रयत्न । इसके जलानेके समय
१८)। जन्म लेते ही जलमें फेंक देनेके लिये इनसे तक्षककी पत्नीका अर्जुनद्वारा वध ( आदि. २२३
वसुओंकी अभ्यर्थना ( आदि० ९६ । १९)। शान्तनुको अध्यायसे २२५ तक)।
एक पुत्र प्राप्त होनेके लिये इनका वसुओद्वारा व्यवस्था खाण्डवदाहपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय कराना (आदि० ९६ । २०-२२) । अपना पति २२१ से २२६ तक)।
बननेके लिये राजा प्रतीपसे इनकी प्रार्थना (आदि० ९७ । खाण्डवप्रस्थ-प्राचीन कालका एक नगर, जो पाण्डवोंकी ५)। दाहिनी जाँघपर बैठनेके कारण इन्हें पनीरूपमें राजधानी थी-इन्द्रप्रस्थ (आदि. ६१ । ३५) । यही नहीं, पुत्रवधूरूपमें प्रतीपका अङ्गीकार करना (आदि.
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