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गतिताली
गन्धर्वनगर
९३ । २२)। इसका वृषादर्भिसे प्रतिग्रहके दोष बताकर उससे भय प्रकट करना (अनु० ९३ । ४६)। इसका यातुधानीसे अपने नामका अभिप्राय बताना (अनु. ९३ । ९८)। मृणालकी चोरीके विषयमें शपथ खाना (अनु० ९३ । १२९)। गतिताली-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६७)। गद-भगवान् श्रीकृष्णके अनुज । ये द्रौपदीके स्वयंवरमें
आये थे (आदि० १०५ । १७)। अर्जुन और सुभद्राके लिये दहेज लेकर ये द्वारकासे इन्द्रप्रस्थ आये थे (आदि० २२० । ३२ )। श्रीकृष्णके द्वारका जानेपर गदने इनका स्वागत किया और श्रीकृष्णने उन्हें हृदयसे लगाया (सभा० २।३५)। युधिष्ठिरके मयनिर्मित सभाभवनमें प्रवेश करनेके समय गद भी वहाँ उपस्थित थे ( सभा० ४।३०)। पाण्डुनन्दन युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें अन्य वृष्णिवंशियोंके साथ गद भी पधारे थे ( सभा० ३४ । १६ )। शाल्वके चढ़ाई करनेपर इन्होंने द्वारका नगरीकी रक्षा-व्यवस्थामें सहयोग दिया था ( वन० १५। ९)। युधिष्ठिरके अश्वमेध यज्ञमें श्रीकृष्णके साथ ये भी आये थे (आश्व. ८६ । ५)। मौसल-युद्धमें गदको मारा गया देख भगवान् श्रीकृष्णको विरोधियोंपर बड़ा क्रोध हुआ था ( मौसल० ३।४५)। गदापर्व-शल्यपर्वका एक अवान्तर पर्व (शल्य० अध्याय
३० से ६५ तक)। गदावसान-मथुराका स्थानविशेष । श्रीकृष्णके द्वारा अपने जामाता कंसके मारे जानेपर अत्यन्त कुपित हो मगधराज जरासंधने श्रीकृष्णको मारने की नीयतसे निन्यानबे बार अपनी गदा धुमाकर गिरिजजसे मथुराकी ओर फेंकी। वह गदा निन्यानबे योजन दूर मथुरामें जाकर गिरी । जिस स्थानपर वह गदा गिरी थी, वह स्थान मथुरामें 'गदावसान' नामसे विख्यात हुआ ( सभा. १९।
२२-२५)। गन्धकाली-सत्यवतीका दूसरा नाम । भीष्मने पिताका प्रिय करनेकी इच्छासे उनके साथ माता सत्यवती या गन्धकालीका विवाह करवाया (आदि० ५५ । १८)। (देखिये सत्यवती) गन्धमादन-(१) हिमालयके उत्तरभागमें स्थित बदरिकाश्रमके समीपवर्ती पर्वत । गन्धमादनपर कश्यपजीने तपस्या की (आदि० ३०।१०)। यही भगवान् शेषने भी तप किया था ( आदि. ३६ । ३ )। शतशृङ्गपर्वतपर तपस्याके लिये जाते समय दोनों पत्नियोसहित पाण्डुका यहाँ आगमन (आदि. ११८।१४)। यह गन्धमादन पर्वत दिव्यरूप धारण करके कुबेरकी सभामै रहकर उन
भगवान् धनाध्यक्षकी उपासना करता है ( सभा० १०।३२)। नारायणरूपसे भगवान् श्रीकृष्णने यत्रसायंगृह मुनि होकर दस हजार वर्षांतक गन्धमादन पर्वतपर निवास किया है (वन०१२।११)। तपस्याके लिये जाते समय अर्जुनने हिमवान् तथा गन्धमादन पर्वतको लाँधकर आगेकी यात्रा की थी ( बन. ३७ । १)। तपोबलसे ही गन्धमादनपर जाना सम्भव है-यह लोमशका वचन (वन. १४०। २२)। गन्धमादनपर विशाला बदरीका वृक्ष और भगवान् नर-नारायणका आश्रम है। वहाँ सदा यक्षलोग निवास करते हैं ( वन० १४१ । २२-२४ ) । पाण्डवोका गन्धमादनमें प्रवेश और वहाँकी प्राकृतिक स्थितिका वर्णन ( वन० १४३।२-६)। घटोत्कच और उसके साथियोंकी सहायतासे पाण्डवोका गन्धमादनपर्वतपर पहुँचना (वन० १४५ अ०)। गन्धमादनकी प्राकृतिक शोभाका वर्णन (वन० १५८ अध्याय)। गन्धमादनपर भीमसेनद्वारा कुबेरके सखा राक्षसप्रवर मणिमान्का वध (धन. १६० । ७६-७७ )। अर्जुनका इन्द्रलोकसे लौटकर गन्धमादनपर आना (वन० १६४ अध्याय)। लङ्कासे निर्वासित हुए कुबेरका गन्धमादनपर निवास (वन. २७५ । ३३)। यहाँ नर-नारायणने अवर्णनीय तपस्या की है ( उद्योग० ९६ । १५) । (२) गन्धमादन-निवासी एवं गन्धमादन नामसे प्रसिद्ध एक वानर-यूथपति, जो दस खरब बानरोंकी सेना साथ लेकर श्रीरामके समीप आया था (वन० २८३ । ५)। (३) एक राक्षसराज, जो यक्षों, गन्धवों और निशाचरोंके साथ कुबेरकी सभामें उनकी उपासना
करता है (सभा० १० । ३०-३१)। गन्धर्वतीर्थ-सरस्वती-तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ
विश्वावसु आदि गन्धर्व नृत्य आदिका आयोजन करते रहते हैं। बलरामजीने इसकी यात्रा की थी (शल्य. ३७ ।
९-१३)। गन्धर्वनगर-( नगर, ग्राम आदिका वह आभास, जो
आकाशमें या स्थलमें दृष्टिदोषसे दिखायी पड़ता है। जब गरमीके दिनोंमें मरुभूमि या समुद्र में वायुकी तहोंका घनत्व उष्णताके कारण असमान होता है, उस समय प्रकाशकी गतिके विच्छेदसे दूसरे शहर, गाँव, वृक्ष, नौका आदिका प्रतिविम्ब आकाशमें पड़ता है और कभी-कभी उस आकाशके प्रतिविम्बका प्रतिविम्ब उलटकर पृथ्वीपर पड़ता है, जिससे कभी दूरके गाँव, नगर या तो आकाशमें उलटे टॅगे या समीप दिखायी पड़ते हैं। यह दृष्टिदोष वायुकी असमान तहके कारण उस समय होता है, जब नीचेकी
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