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कृष्ण
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द्वारा कंसके मन में भयका उत्पादन और कुवलयापीडका वध, श्रीकृष्णद्वारा कंसका वध और उग्रसेनका राजाके पदपर अभिषेक ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८०१६८०४ ) । बलरामजीके साथ इनका मथुरा में ही निवास, उज्जयिनी में सान्दीपनि
के यहाँ इन दोनों भाइयोंका अध्ययनके लिये जाना तथा चौंसठ कलाओंका अध्ययन एवं गुरुसेवा करना, इन्हें बारह दिनोंमें ही गजशिक्षा और अश्वशिक्षाकी प्राप्ति । इनका पुनः धनुर्वेदकी शिक्षाके लिये सान्दीपनिके यहाँ जाना और अवन्तीमें निवास करना; पचास दिन-रात में ही दस अङ्गोंसे युक्त सुप्रतिष्ठित एवं रहस्यसहित धनुर्वेदका ज्ञान प्राप्त करना; सान्दीपनिपुत्रके मारनेवाले असुरका श्रीकृष्ण और बलरामद्वारा वध; मरे हुए गुरुपुत्रको यमलोकसे लाकर इनके द्वारा गुरुदक्षिणा तथा ऐश्वर्यका दान ( सभा० ३८ | पृष्ठ ८०२ ) । चौंसठ कलाओं के नाम ये हैं - १ - गीत ( गाना ), २ - वाद्य ( बाजा बजाना ), ३-नृत्य ( नाचना ), ४ - नाट्य ( नाटक करना, अभिनय करना ), ५ - आलेख्य ( चित्रकारी करना ), ६ - विशेषकच्छेद्य ( तिलकके साँचे बनाना ), ७-तण्डुलकुसुमवलिविकार ( चावलों और फूलोंका चौक पूरना ), ८- पुष्पास्तरण ( फूलोंकी सेज रचना तथा बिछाना ), ९ - दर्शन - वसनाङ्गराग ( दाँतों, कपड़ों और अङ्गको रँगना या दाँतोंके लिये मञ्जन - मिस्सी आदि, वस्त्रोंके लिये रंग और रँगनेकी सामग्री तथा अङ्गोंमें लगाने के लिये चन्दन, केसर, मेंहदी, महावर आदि बनाना और उनके बनानेकी विधिका ज्ञान ), १० - मणिभूमिका कर्म ( ऋतुके अनुकूल घर सजाना ), ११ - शयनरचना ( बिछावन वा पलंग बिछाना ), १२ - उदकवाद्य ( जलतरंग बजाना ), १३ - उदकघात ( पानी के छींटे आदि मारने वा पिचकारी चलाने और गुलाबपाससे काम लेनेकी विद्या ), १४ - चित्रयोग ( अवस्था परिवर्तन करना अर्थात् नपुंसक करना, जवानको बुढ्ढा और बुड्ढेको जवान करना इत्यादि ), १५ - माल्यग्रन्थ-विकल्प ( देवपूजनके लिये या पहननेके लिये माला गूँथना ), १६ - केश शेखरा - पीड़ - योजन सिरपर फूलोंसे अनेक प्रकारकी रचना करना या सिरके बालोंमें फूल लगाकर गूँथना ), १७ - नेपथ्ययोग ( देश-कालके अनुसार वस्त्रआभूषण आदि पहनना ), १८ - कर्ण-पत्र-भंग ( कार्नोके लिये कर्णफूल आदि आभूषण बनाना ), १९ - गन्धयुक्ति (सुगन्धित पदार्थ, जैसे गुलाब, केवड़ा, इत्र, फुलेल आदि बनाना ), २० - भूषण - भोजन, २१ - इन्द्रजाल, २२कौचुमारयोग ( कुरूपको सुन्दर करना या मुँहमें और शरीरमें मलने आदिके लिये ऐसे उबटन आदि बनाना, जिनसे कुरूप भी सुन्दर हो जाय ), २३ - हस्तलाघव म० ना० ११
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कृष्ण
( हाथकी सफाई, फुर्ती या लाग ), २४ - चित्रशाकापूपभक्ष्यविकार किया अनेक प्रकारकी तरकारियाँ; पूप और खाने के पकवान बनाना, सूपकर्म ), २५ - पानकरसरागासव - भोजन ( पीनेके लिये अनेक प्रकारके शर्बत, अर्क और शराब आदि बनाना ), २६ - सूचीकर्म
सीना, पिरोना ), २७ – सूत्रकर्म ( रफूगरी और कसीदा काढ़ना तथा तागेसे तरह-तरह के बेल-बूटे बनाना ), २८-प्रहेलिका ( पहेली या बुझौवल कहना और बूझना ), २९ - प्रतिमाला ( अन्त्याक्षरी अर्थात् श्लोकका अन्तिम अक्षर लेकर उसी अक्षरसे आरम्भ होनेवाला दूसरा श्लोक कहना, बैतबाजी ), ३० - दुर्वाचकयोग ( कठिन पदों या शब्दों का तात्पर्य निकालना ), ३१-पुस्तकवाचन ( उपयुक्त रीति से पुस्तक पढ़ना ), ३२- नाटिकाख्यायिका-दर्शन ( नाटक देखना या दिखलाना ), ३३काव्य- समस्या-पूर्ति, ३४- पट्टिका वेत्रवानविकल्प ( नेवाड़, बा या तसे चारपाई आदि बुनना ), ३५ - तर्क-कर्म ( दलील करना या हेतुवाद ), ३६ - तक्षण ( बढ़ई; संगतराश आदिका काम करना ), ३७ - वास्तुविद्या ( घर बनाना; इंजीनियरी ), ३८ - रूप्यरत्न- परीक्षा ( सोने, चाँदी आदि धातुओं और रत्नोंको परखना ), ३९ - धातुवाद ( कच्ची धातुओंको साफ करना या मिली धातुओंको अलग-अलग करना ), ४० - मणिराग-ज्ञान ( रत्नों के रंगोंको जानना ), ४१ - आकर शान ( खानोंकी विद्या ), ४२ - वृक्षायुर्वेदयोग ( वृक्षोंका शान; चिकित्सा और उन्हें रोपने आदि की विधि ), ४३मेष- कुक्कुटलावक- युद्ध विधि ( भेंड़े, मुर्गे, बटेर, बुलबुल आदिको लड़ाने की विधि), ४४ -- शुक-सारिकाप्रलापन (तोता मैना पढ़ाना ), ४५ –उत्सान ( उचटन लगाना और हाथ, पैर, सिर आदि दबाना ), ४६ - केशमार्जन कौशल (बालों का मलना और तेल लगाना), ४७- अक्षरमुष्टिकाकथन ( करपलाई ), ४८ – म्लेच्छितकला विकल्प ( म्लेच्छ या विदेशी भाषाओं का जानना ), ४९ -- देशभाषाज्ञान ( प्राकृतिक बोलियोंको जानना ), ५०- पुष्पशकटिकानिमित्तज्ञान ( दैवीलक्षण, जैसे बादलकी गरज, बिजलीकी चमक इत्यादि देखकर आगामी घटनाके लिये भविष्यवाणी करना ), ५१ - यन्त्रमातृका ( यन्त्रनिर्माण), ५२ -- धारणमातृका ( स्मरण बढ़ाना), ५३ - सम्पाठ्य ( दूसरेको कुछ पढ़ते हुए सुनकर उसे उसी प्रकार पढ़ देना ), ५४ - मानसी काव्य - क्रिया ( दूसरेका अभिप्राय समझकर उसके अनुसार तुरंत कविता करना या मनमें काव्य करके शीघ्र कहते जाना), ५५ - - क्रियाविकल्प ( क्रियाके प्रभावको पलटना ), ५६ - छलितकयोग ( छल या ऐय्यारी करना ), ५७ - अभिधान ( कोष-छन्दोज्ञान ), ५८ - वस्त्रगोपन