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कर्ण
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०ना०८
( ५७ )
इसके द्वारा कवच-कुण्डल- दान ( वन० ३१० । ३८ ) । पाण्डवों का पता लगाने के लिये इसकी पुनः गुप्तचर भेजने की सलाह ( विराट० २६ । ८ - १२ ) । द्रोणाचार्यकी बातों पर आक्षेप करते हुए अर्जुनसे युद्ध करनेका ही इसका निश्चय ( विराट० ४७ । २१ - ३४ ) । इसकी आत्मप्रशंसापूर्ण अहङ्कारोक्ति ( विराट० ४८ अध्याय ) । अर्जुनपर इसका आक्रमण ( विराट० ५४ । १९ ) । अर्जुन से पराजित होकर युद्ध के मुहानेसे भागना ( विराट० ५४ । ३६ ) | अर्जुनके साथ पुनः युद्ध और पराजित होकर भागना ( विराट० ६० । २७ ) । कर्णके कपड़ोंका उत्तरद्वारा उतारा जाना ( विराट० ६५ । १५ ) । द्रुपदके पुरोहितके कथनका समर्थन करनेवाले भीष्मके वाक्योंपर इसका आक्षेप करना ( उद्योग० २१ । ९-१५ ) । इसकी आत्मप्रशंसा ( उद्योग ० ४९ । २९– ३२; उद्योग० ६२ । २ -६ ) । भीष्मजीके आक्षेप करनेपर इसका अस्त्र त्यागकर सभासे प्रस्थान ( उद्योग० ६२ । १३ ) | दुर्योधनके पक्षमें रहनेका निश्चय बताते हुए श्रीकृष्णसे रणयज्ञके रूपकका वर्णन करना ( उद्योग ० १४१ अध्याय | इसके द्वारा श्रीकृष्णसे युधिष्ठिरकी विजय और दुर्योधनकी पराजयके लक्षणोंका वर्णन ( उद्योग० १४३ । २--४५ ) । कुन्तीको उत्तर देते हुए उनके चार पुत्रोंको न मारनेकी प्रतिज्ञा ( उद्योग ० १४६ । ४–२३ ) । भीष्मजी के जीते जी युद्ध न करनेकी प्रतिज्ञा ( उद्योग० १५६ । २५ ) | भीष्मकी कटु आलोचना ( उद्योग० १६८ । ११ -- २९ ) । पाँच दिनमें ही पाण्डवसेनाको नष्ट करनेकी अपनी शक्तिका कथन ( उद्योग ० १९३ । २० ) | श्रीकृष्णके समझानेपर दुर्योधनका ही पक्ष ग्रहण करनेका निश्चय ( भीष्म ० ४३ । ९२ ) । भीष्मसे शस्त्र डलवा देनेके लिये दुर्योधनको सलाह देना ( भीष्म० ९७ । ७ – १३ ) । बाणशय्या पर पड़े हुए भीष्म के पास जाकर इसका उन्हें प्रणाम करना ( भीष्म० १२२ । ४-५ ) । भीष्मके समझानेपर क्षमा-प्रार्थना करते हुए इसका युद्धका ही निश्चय बताना ( भीष्म० १२२ । २३ - - ३३ ) । कौरवोद्वारा इसका स्मरण ( द्रोण० १ । ३३ -- ४७ ) । भीष्मके लिये शोक प्रकट करते हुए इसका रणके लिये प्रस्थान ( द्रोण० २ अध्याय) । भीष्मकी प्रशंसा करते हुए युद्धकं लिये उनसे आजा माँगना ( द्रोण० ३ अध्याय ) । भीष्मकी आज्ञा पाकर कौरवोंकी सेनामें इसका जाना (द्रोण० ४ । १५) । दुर्योधनके पूछने पर इसका सेनापतिके लिये द्रोणाचार्यका नाम बताना ( द्रोण० ५ । १३ - - २१ ) । दुर्योधनसे भीमसेन के स्वभावका वर्णन करते हुए द्रोणाचार्य की रक्षा के लिये कहना ( द्रोण० २२ । १८ - - २८ ) । केकय
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राजकुमारों के साथ युद्ध ( द्रोण० २५ । ४२-४४ )। अर्जुन, भीमसेन, पृष्टद्युम्न और सात्यकिके साथ युद्ध ( द्रोण० ३२ । ५२--७० )। इसका अभिमन्युसे पराजित होना ( द्रोण० ४० । १७ -- ३६ ) । इसका द्रोणाचार्य अभिमन्यु वधका उपाय पूछना ( द्रोण० ४८ | १८ ) । इसके द्वारा अभिमन्युके धनुष और ढालका काटा जाना ( द्रोण० ४८ । ३२ - ३९ ) । इसके ध्वजका वर्णन ( द्रोण० १०५ । १२-१४ ) । भीमसेनके साथ युद्धमें इसका पराजित होना ( द्रोण० १२९ । (३३) । भीमसेन के साथ इसका युद्ध और पराजित होना ( द्रोण० १३५ से १३८ अध्यायतक ) । भीमसेनसे बचने के लिये इसका रथमें दुबक जाना ( द्रोण० १३९ । ७६ ) । भीमसेनको मूच्छित करके इसका धनुषकी नोक से उन्हें दबाना ( द्रोण० १३९ । ९१-९२ ) । भीमसेनको कटुवचन सुनाना ( द्रोण० १३९ । ९५–१०९ ) । अर्जुन के बाणोंसे आहत होकर इसका दूर हट जाना ( द्रोण० १३९ । ११४ ) । अर्जुनके द्वारा युद्ध में परास्त होना ( द्रोण० १४५ ॥ ८३-८४ ) । दुर्योधन के प्रोत्साहन देनेपर उसे उत्तर देना ( द्रोण० १४५ । २५ - ३३ ) । सात्यकिके साथ युद्धमें इसकी पराजय ( द्रोण० १४७ । ६४-६५ ) । दुर्योधनद्वारा द्रोणाचार्यपर किये गये दोषारोपणका निराकरण ( द्रोण० १५२ । १५ - २२ ) । दुर्योधनसे दैवकी प्रधानताका वर्णन ( द्रोण० १५२ । २३-३४ )। दुर्योधनको आश्वासन ( द्रोण० १५८ ।५-११ ) । इसके द्वारा कृपाचार्यका अपमान ( द्रोण० १५८ ॥ २५–३२; द्रोण० १५८ | ४९-७० ) । अर्जुन के साथ युद्ध में इसका पराजित होना ( द्रोण० १५९ । ६२-६४ )। सहदेवको युद्ध में परास्त करके उनके शरीर में धनुषकी नोक चुभोकर उन्हें कटु वचन सुनाना ( द्रोण० १६७। २ - १८ ) । सात्यकिके साथ इसका युद्ध ( द्रोण० १७० । ३०—४३ ) । दुर्योधनको इसकी सलाह ( द्रोण० १७० । ४६—–६० ) । इसके द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय ( द्रोण० १७३ । ७ ) । घटोत्कच के साथ इसका घोर युद्ध ( द्रोण ० १७५ अध्याय ) । इसके द्वारा इन्द्रकी दी हुई शक्तिसे घटोत्कचका वध ( द्रोण० १७९ । ५४ -५८ ) । भीमसेनके साथ युद्ध और उन्हें परास्त करना (द्रोण० १८८ । १०-२२ ) । भीमसेनके साथ युद्ध ( द्रोण० १८९ । ५० - ५५ ) । द्रोणाचार्य के मारे जानेपर युद्धस्थलसे भागना ( द्रोण० १९३ । १० ) । सात्यकिद्वारा इसकी पराजय ( द्रोण० २०० । ५३ ) । संजयद्वारा इसके सेनापतित्व तथा मृत्युका वर्णन ( कर्ण० ३ । १७ - २१ ) । अर्जुनद्वारा इसके पुत्र वृषसेन के