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काश्यपद्वीप
( ६८ )
कीचक
विश्वावसु, इन्द्र, आदित्य, वसु, अन्य देवता तथा कश्यप- (३) यमराजके दण्डका नाम । वे अन्तकालमें इससे कलमें उत्पन्न समस्त प्रजा काश्यप कही गयी है ।(४) प्राणियोंका संहार करते हैं (कर्ण. ५६।१२०)। कश्यपपुत्र काश्यप नामक अग्नि । यह उन पाँच अग्नियों- किङ्किणीकाश्रम-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे स्वर्गलोकमेंसे एक हैं, जिन्होंने तीव्र तपस्या करके पाञ्चजन्यको की प्राप्ति होती है (अनु. २५। २३)। उत्पन्न किया था (वन० २२० । १-५ )। महत्तर
कितव-एक प्राचीन जातिके लोग, जो नाना प्रकारकी भेटनामक अग्नि, जो काश्यपके अंशसे प्रकट हुए थे, वे भी
सामग्री लेकर राजा युधिष्ठिरके यहाँ आये थे काश्यप कहलाये। इन्हें पाञ्चजन्यने पितरोंके लिये उत्पन्न
(सभा० ५१ । १२)। किया था (वन० २२० । ९)। (५) एक ऋषि
किन्नर-गन्धर्वविशेष (सभा० १० । १४)। कुमार, जो एक वैश्यक रयके धक्केसे गिरकर आत्महत्या करनेको उद्यत हो गये । शृगालरूपधारी इन्द्रके साथ किम्पुना-एक तीर्थस्वरूपा पवित्र नदी, जो वरुणकी उनका संवाद (शान्ति० १८०।६)।
__ सभामें रहकर उनकी उपासना करती है (सभा०९।२०)। काश्यपद्वीप-एक द्वीप, जो चन्द्रमा प्रतिविम्बित खरगोश- किम्पुरुष-(१) धवलगिरिसे आगे हिमालयके उत्तर
की आकृतिमें एक कानके रूपमें दृष्टिगोचर होता है भागमें विद्यमान एक देश, जो द्रुमपुत्रसे सुरक्षित था । (भीष्म०६ । ५५)।
इसे अर्जुनने जीता था (सभा० २८ । १-२)। (२) काष्ठा-कालपरिमाण (शल्य०४५। १५)।
एक जाति, जो पुलहकी संतान हैं (आदि०६६।८)। किंजप्य-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ स्नान और
किम्पुरुषोंने समुद्रपानका अद्भुत दृश्य देखनेके लिये
अगस्त्यजीका अनुसरण किया था (वन० १०४ । २१)। जप करनेसे असीम फल प्राप्त होता है (वन० ८३ । ७९)।
कुबेरके क्रीडास्थलरूप सरोवरकी रक्षामें किम्पुरुष भी तत्पर किंदत्तकृप-एक कूपमय तीर्थ, जहाँ सेरभर तिल दान
रहते थे (वन. १५३ । ९)। कुबेर लंका छोड़कर करनेसे मनुष्य तीनों ऋणोंसे मुक्त होता है (वन०
किम्पुरुषोंके साथ गन्धमादनपर आकर रहने लगे ८३ । ९८)।
(वन० २७५ । ३३) । ये दक्ष-कन्याओंकी संतति हैं किंदम-एक ऋषि, मृगीरूपधारिणी पत्नीके साथ मृगरूप
(शान्ति. २०७ । २५)। युधिष्ठिरके अश्वमेधयज्ञमें धारण करके मैथुन करते समय इनका पाण्डुके बाणोंसे किम्पुरुष भी थे ( आश्व० ८८ । ३७ )। (३) घायल होना (आदि. ११७ । ६-७)। बाणकी चोट जम्बूद्वीपका एक खण्ड, जिसे किम्पुरुषवर्ष एवं हैमवत खानेपर इनका मानव-वाणीमें विलाप ( वन
भी कहते हैं । शुकदेवजी इसे लाँधकर भारतक ११७1८-११)। इनका पाण्डुके साथ संवाद (वन. थे (शान्ति. ३२५ । १३-१४)। ११७। १२-२९ ) । इनके द्वारा राजा पाण्डुको शाप किरात-एक भारतीय जनपद (भीष्म० २१ ५१, ५७)। (वन०११७ । ३०-३३)। इनका प्राणत्याग (वन.
- किरीटी-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ७१)। ११७।३४)। किंदान-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ स्नान और किर्मीर-एक राक्षस, जो नरकासुरका भ्राता और काम्यकदान करनेसे उसका असीम फल प्राप्त होता है।
वनका रहनेवाला था। इसका भीमसेनसे युद्ध (वन. (वन० ८३ । ७९)।
११। ४४-६४)। भीमसेनद्वारा इसका वध (वन. किङ्कर-(१) एक राक्षस, जिसने विश्वामित्रकी प्रेरणासे
११।६७)।
किर्मीरवधपर्व-वनपर्वके एक अवान्तर पर्वका नाम ( वनशापग्रस्त राजा कल्माषपादके शरीरमें प्रवेश किया था किमारवधपक (आदि. १७५ । २१)। विश्वामित्रकी प्रेरणासे इसके
पर्वका ग्यारहवाँ अध्याय)। द्वारा वसिष्ठके समस्त पत्रोंका संहार ( आदि० किष्किन्धागुहा-दक्षिण भारतमें धारवाड़ जिलेका एक १७५ । ११)। (२) राक्षसोंकी एक जाति या वर्ग, जो पर्वतीय स्थान, जहाँ प्राचीन कालमें वानरराज वालि-सुग्रीव मयासुरकी आशाके अनुसार आठ हजारकी संख्यामें
रहा करते थे। यहाँ सहदेवने मैन्द और द्विविदको जीता उपस्थित हो युधिष्ठिरके मयनिर्मित सभाभवन की रक्षा करते
था (सभा० ३१ । १७)। इसी किष्किन्धामें श्रीरामने और उसे एक स्थानसे दूसरे स्थानपर उठाकर ले जाते थे वालीको मारा और सुग्रीवको वहाँका स्वामी बनाया ( सभा. ३ । २८; सभा०४८।९)। युधिष्ठिरने
(वन० २८० । १५-३९)। धन लनेके लिये हिमालयपर जानेके बाद वहाँ किङ्कर कीचक-मत्स्यनरेश विराटका साला और सेनापति एक नामक राक्षसोंको भेट पूजा दी थी (आश्व० ६५। ६)। महाबली वीर, जो द्रौपदीको देखकर काममोहित हो
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