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कुन्ती
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कुन्ती
इनके द्वारा महर्षि दुर्वासाकी परिचर्या एवं संतुष्ट हुए महर्षिद्वारा इनको मन्त्रका उपदेश ( आदि.६७ । १३३-१३४; आदि. ११० । ६ )। कौतूहलवश इनके द्वारा सूर्यका आवाहन ( आदि. ६७ । १३६; आदि. ११० । ८) सूर्यद्वारा इनको अपने साथ समागमके लिये आदेश ( आदि० ११० । १३)। इनका सूर्यसे क्षमायाचना करते हुए उनके प्रस्तावको अस्वीकार करना ( आदि. ११० । ११-१६)। दोषोंके अस्पर्शका आश्वासन एवं दिव्यपुत्रका प्रलोभन देकर इनके साथ सूर्यका समागम (आदि. ११० । १६-१८)। इनके गर्भसे कर्णका जन्म ( आदि. ६७ । १३७, आदि. ११०।१८)। सूर्यदेवका इनको पुनः कन्यात्व प्रदान करना ( आदि. ११०।२०)। माता-पिता आदि बान्धवोंके भयसे इनके द्वारा नवजात शिशुका जलमें परित्याग ( आदि० ६७ । १३९, आदि. ११० । २२ ) इनके द्वारा स्वयंवरमें पाण्डुका वरण
और पिताद्वारा इनका विधिपूर्वक पाण्डुके साथ विवाह (आदि. १११ । ८-९)। संन्यासके लिये कृतसंकल्प हुए पाण्डुसे वानप्रस्थाश्रममें रहनेके लिये इनका हठ ( आदि. ११८ । २७-३०)। इनको किसी श्रेष्ठ पुरुषके सम्पर्कसे पुत्रोत्पादन करनेके लिये पाण्डका आदेश ( आदि० ११९ । ३७ )। परपुरुषसे संतानोत्पादनके विषयमें इनका विरोध तथा व्युषिताश्व एवं भद्राका उदाहरण देकर अपने मानसिक संकल्पसे ही पत्रोत्पादन के लिये पाण्डुसे इनकी प्रार्थना ( आदि. १२० । १-३७)। इनका दुर्वासासे प्राप्त हुए मन्त्रकी महिमा बताकर किसी देवताके आवाहनके लिये पाण्डुसे आज्ञा माँगना ( आदि० १२१ । १०-१६)। धर्मराजके आवाहनके लिये इनको पाण्डुका आदेश ( आदि. १२१ । १७-२०)। इनके द्वारा धर्मका आवाहन और उनके द्वारा इनके गर्भसे युधिष्ठिरका जन्म ( आदि. १२२ । ७) । वायुदेवका आवाहन और उनके द्वारा इनके गर्भसे भीमकी उत्पत्ति ( आदि. १२२ । १४)। इन्द्रका आवाहन और उनके द्वारा इनके गर्भसे अर्जुनका जन्म ( आदि. १२२ । ३५)। इनके द्वारा तीनसे अधिक संतानोत्पादनका निषेध ( भादि. १२२ । ७७-७८) । माद्रीके गर्भसे पुत्रकी उत्पत्तिके लिये इनसे पाण्डुका आग्रह (आदि. १२३ । ९-३४)। इनकी कृपासे माद्रीको पुत्रलाभ (आदि० १२३ । १५-१६)। पाण्डुके निधनपर इनका करुण विलाप (आदि० १२४ । १६-२३ ) । कुन्तीका मूर्च्छित होकर गिरना, माद्रीके उठानेपर विलाप करना तथा शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा इनको आश्वासन (आदि० १२४ । २२ के बाद दा०
पाठ)। पतिके साथ सती होनेके लिये इनका माद्रीसे अनुरोध (आदि. १२४ । २३-२४)। बच्चोंकी रक्षाके हेतु सती न होनेके लिये इनसे माद्रीकी प्रार्थना (आदि. १२४ । २८)। पाण्डवोंके अल्पवयस्क होनेके कारण इनसे सती न होनेके लिये शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंका अनुरोध, पतिके शवके साथ चितारोहणके लिये इनसे माद्रीका आज्ञा माँगना (आदि० १२४ । २८ के बाद दा० पाठ )। माद्रीको सती होनेके लिये इनकी आज्ञा ( आदि० १२४ । २९)। ऋषियोंका कुन्ती और पाण्डवोंको लेकर हस्तिनापुर जाना (आदि० १२५ अ०) भीमके नागलोक चले जानेपर इनकी चिन्ता तथा विदरद्वारा इनको आश्वासन ( आदि. १२८ । ११-१८ ) । रङ्गभूमिमें कर्ण और अर्जुनके युद्ध के लिये उद्यत होनेपर इनकी मूर्छा तथा विदुरद्वारा इनको आश्वासन (आदि० १३५ । २७-२८) । कुन्तीसहित पाण्डवोंकी वारणावतयात्रा ( आदि. १४४ अ० )। इनके सहित पाण्डवोका लाक्षागृहसे निकल जाना (आदि. १४७ अ.)। अधिक थक जाने के कारण माता कुन्तीको भीमसेनका अपनी पीठपर बिठाकर ले जाना (आदि. १४७ । २०-२१)। भीमको पतिरूपमें प्राप्त करनेके लिये इनसे हिडिम्बाकी प्रार्थना (आदि० १५४ । ४-१५) । हिडिम्बाकी मनोरथपूर्ति के लिये उनका युधिष्ठिरसे अनुरोध ( आदि. १५४ । १५ के बाद दा. पाठ ) । कामपीड़ित हिडिम्बाको पुत्रदान करनेके लिये इनका भीमको आदेश ( आदि. १५४ । १८ के बाद दा० पाठ ) । एकचक्रा नगरीके समीप इनको व्यासका आश्वासन (आदि. १५५।१२)। इनका ब्राह्मणपरिवारके विषयमें भीमसेनसे वार्तालाप ( आदि. १५६ । ११-१५ )। ब्राह्मणद्वारा इनसे बकासुरके वृत्तान्तका कथन (आदि. १५९ । २-१७)। ब्राह्मण-परिवारको इनका आश्वासन (आदि. १६० । १-३)। भीमद्वारा बकवध-वृत्तान्तको गुप्त रखनेके लिये इनका ब्राह्मणसे अनुरोध ( आदि० १६० । १६-१७ ) । ब्राह्मणपरिवारको दुःखसे मुक्त करने एवं अत्याचारी बकासुरके विनाशके लिये इनका भीमको आदेश (आदि. १६० । २०)। इनके इस आदेशका युधिष्ठिरद्वारा प्रतिवाद (आदि० १६३ । ५)। युधिष्ठिरके प्रति इनके द्वारा कृतज्ञताकी प्रशंसा ( आदि. १६१ । १४)। इनके द्वारा युधिष्ठिरके प्रति भीमके बाहुबलकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन ( आदि० १६१ । १५-१८)। इनको पुत्रोसहित पाञ्चालदेश जानेके लिये आगन्तुक ब्राह्मणकी प्रेरणा ( आदि. १६६ । ५६ के बाद दा० पाठ)। पाञ्चालदेश चलनेके लिये इनका युधिष्ठिरको परामर्श
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