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काशिक
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१२- १५; उद्योग० ११७ । १) । फिर वृषदर्भ उशीनर भी कभी वहाँके राजा हुए थे ( अनु० ३२ । ९)। अम्बा स्वयंवर के अवसरपर भीष्मने इस देशको जीता था ( अनु० ४४ । ३८ ) । युधिष्ठिरके अश्वमेधका घोड़ा इस देशमें गया था ( आश्व० ८३ | ४ ) । (२) काशीराज्य अथवा जनपद में रहनेवाले लोग। काशिराज और काशिप्रदेशके योद्धा युधिष्ठिरकी सेनामें थे तथा भीष्मद्वारा मारे और घायल किये गये ( भीष्म० १०६ । १८–२० ) ।
काशिक - पाण्डवपक्षका एक उदार रथी ( उद्योग० १७१ । १५)।
काशिराज- काशिदेश के राजा, जो 'दीर्घजिह्न' नामक दानव के अंशसे उत्पन्न थे ( आदि० ६७ । ४० ) । ये युधिष्ठिर के बड़े प्रेमी थे । उपप्लव्य नगर में अभिमन्युके विवादमें एक अक्षौहिणी सेनाके साथ इनका शुभागमन हुआ था ( विराट० ७२ । १६ ) । ये बड़े पराक्रमी थे और महाभारत युद्ध में इन्होंने पाण्डवोंका पक्ष ग्रहण किया था ( भीष्म० २५ । ५ ) ।
काशी - प्रजापति कविके पुत्र | आठ वारुणसंज्ञक पुत्रोंमेंसे एक (अनु० ८५ | १३३)।
काशीपुरी - वाराणसी नगरी, जिसे भगवान् श्रीकृष्ण ने
जलाया था ( उद्योग० ४८ । ७६ )। काशीश्वरतीर्थ कुरुक्षेत्र की सीमामें अम्बुमती नदीके समीप स्थित एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके मनुष्य सब रोगेसि मुक्त और ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है ( वन० ८३ । ५७ T
काश्मीर ( काश्मीरक ) - एक भारतीय जनपद तथा यहाँ के निवासी, दिग्विजय के समय इसे अर्जुनने जीता था ( सभा० २७ । १७; भीष्म० ९ । ५३ -६७ )। इस देशके निवासी राजा युधिष्ठिरके लिये भेंट लाये थे ( सभा० ३४ । १२; सभा० ५२ । १४; वन० ५१ । २६ ) | श्रीकृष्ण ने भी काश्मीरवासियोंको परास्त किया था ( द्रोण० ११ । १६ ) | परशुरामजीने इन्हें परास्त किया था ( द्रोण० ७० । ११ ) । काश्मीरमण्डल - पुण्यमय काश्मीर प्रदेशका वह स्थान, जहाँ उत्तरके समस्त ऋषि नहुषकुमार ययाति, अनि और काश्यपका संवाद हुआ था ( वन० १३० । १०(११) । काश्मीरमण्डलकी चन्द्रभागा ( चनाब ) और वितस्ता (झेलम) में सात दिन स्नान करनेसे मनुष्य मुनिके समान निर्मल हो जाता है। काश्मीरमण्डलकी जो नदियाँ महानद सिन्धुमें गिरती हैं, उनमें तथा सिन्धुमें स्नान करके मनुष्य मृत्युके पश्चात् स्वर्गगामी होता है ( अनु० २५ । ७-८ )।
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काश्यप
काश्य - ( १ ) काशी के एक राजा, जो अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका के पिता थे तथा जिनकी उक्त तीनों कन्याओंका भीष्मने अपहरण किया था ( आदि० १०२ । ५६, ६४-६५) । ( २ ) काशिराज जो युधिष्ठिर के समय विद्यमान थे और जिन्होंने राजसूय यज्ञमें युधिष्ठिर के अभिषेक के समय उन्हें धनुप अर्पण किया था ( सभा० ५३ । ९ ) । काश्य तथा अन्य राजाओंके दिये हुए धनको युधिष्ठिर जूए में हार गये ( सभा० ६८ । २ ) । इन्हें पाण्डवों की ओरसे रण- निमन्त्रण भेजा गया था ( उद्योग ० ४ । १९ ) । काश्यके पुत्रका नाम अभिभूथा ( उद्योग० १५१ । ६३; भीष्म० ९३ । १३ ) | उत्तम रथी नरश्रेष्ठ काश्य ( या काशिराज ) भीष्म और द्रोणके समान पराक्रमी थे ( उद्योग ० १७१ । २२ ) । काश्यका नाम 'सेनाविन्दु' और 'क्रोधहन्ता' था (उद्योग ० १७१ । २०-२२ ) । पाण्डवसेनाके महाधनुर्धर शूरवीरों में काश्य ( काशिराज ) भी हैं । इन्होंने भी सबके साथ शङ्खनाद किया था ( भीष्म० २५ । १७ ) । धृतराष्ट्रपुत्र जयके साथ इनका युद्ध ( द्रोण० २५ । ४५ ) । वसुदानके पुत्रद्वारा काशिराज (कुमार) अभिभूके वधकी चर्चा ( कर्ण ० ६ । २३-२४)। ( २ ) एक प्राचीन ऋषि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजी के पास पधारे थे ( शान्ति ० ४७ । १० ) । काश्यप - ( १ ) एक प्रसिद्ध मन्त्रवेत्ता ब्राह्मण, जो सर्पदंशन से पीड़ित हुए परीक्षित् के प्राण बचाने के लिये आ रहे थे ( आदि० ४२ । ३३ ) । इस्तिनापुर जाते समय इनका मार्ग में तक्षकसे भेंट और तक्षकके डँसनेसे भस्म हुए वृक्षको मन्त्रबल से पुनः पूर्ववत् हरा-भरा कर देना ( आदि० ४२ । ३३ से ४३ । १० तक ) । इनका तक्षकसे वार्तालाप करना और उससे यथेष्ट धन पाकर लौट जाना ( आदि० ५० | १९ - २७) । (२) वसुदेवजी के पुरोहित, जिन्होंने पाण्डवोंके गर्भाधान से लेकर चूडाकरण तक सारे संस्कार कराये ( आदि० १२३ । ३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । इनके द्वारा पाण्डुका अन्त्येष्टि- संस्कार सम्पन्न कराया गया ( आदि० १२४ । ३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । युधिष्ठिरका आदर करनेवाले ऋषियोंमें ये भी थे ( वन० २६ । २३ ) । सिद्ध महर्षिके साथ इनका संवाद ( आश्व० १६ । १९ से आश्व० १९ । ५३ तक ) | ( ३ ) इन्द्रकी सभा में विराजमान होनेवाले एक ऋषि, जो कश्यपके पुत्र हैं (सभा० ७ । १७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । परम धर्मात्मा काश्यपने पृथुके यज्ञमें सदस्यता ग्रहण की थी और अत्रि तथा गौतमके विवादको सभामें उपस्थित किया था ( वन ० १८५ । २१ ) । कश्यपपुत्र विभाण्डक, राजधर्मा,