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कालका
( ६५ )
कालयवन
राजकर्मचारियों के दुष्कर्मोको अपनी आँखों देखना माताने तपस्या करके इनके लिये एक विशाल हिरण्यपुर (शान्ति. ८२ । ८) । सर्वज्ञ काकके कथनका नामक नगर ब्रह्माजीसे प्राप्त किया था, जिसमें ये देवताओंबहाना लेकर उनका समस्त राजकर्मचारियोंकी चोरीका से अवध्य एवं सुरक्षित हो निवास करते थे (वन. हाल बताना और राजाको सतत सावधान रहनेके लिये १०३ । ७-१३)। ये वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपदेश देना (शान्ति० ८२ । १२-५७, ६१-६७)। उपासना करते थे (सभा० ९ । १२)। इनके साथ राजा क्षेमदर्शीको इनका वैराग्यपूर्ण उपदेश (शान्ति० अर्जुनका युद्ध और उनके द्वारा इन दानवोंका संहार
१०४ । १२-५४) । राजा क्षेमदशीसे राज्यप्राप्तिके (वन. १७३ अध्याय ) । अर्जुनने इन्द्रकी आज्ञासे विभिन्न उपायोंका वर्णन (शान्ति० १०५।५-२५)। इनका वध किया था ( विराट. ४९। १०; विराट. क्षेमदर्शीसे संधि करनेके लिये राजा जनकको समझाना ६१ । २५, उद्योग० ४९ । १४)। ये भगवान् विष्णुके (शान्ति. १०६ । ९-१९)।
चरणोंसे उत्पन्न कहे गये हैं (उद्योग. १००।५-६)। कालका-महान् असुरकुलकी कन्या, कालकेयों अथवा कालघट-एक वेदविद्याके पारंगत ब्राह्मण, जो जनमेजयके कालकंजोंकी माता, इसकी अपने पुत्रोंके लिये तपस्या सर्पसत्रके सदस्य बने थे (आदि० ५३।८)।
और ब्रह्माजीसे वरयाचना ( अनु० १७३ । ७-११)। कालञ्जरगिरि-मेधाविक तीर्थका लोकविख्यात पर्वत, कालकाक्ष-एक दैत्य, जिसका गरुडद्वारा वध हुआ था जहाँ देवहृदमें स्नानसे सहस्र गोदानका पल मिलता है (उद्योग०१०५ । १२)।
(वन० ८५। ५६)। इस तीर्थकी महिमाका वर्णन कालकीर्ति-मयूरके छोटे भाई सुपर्णनामक असुरके अंशसे (अनु० २५ । ३५)। उत्पन्न एक क्षत्रिय राजा (आदि०६७ । ३७)। कालतीर्थ-अयोध्याका एक तीर्थ, जहाँ स्नानसे ग्यारह
कर- समदसे प्रकट हआ एक भयानक विष वृषभदानका फल प्राप्त होता है (वन०८५।११)। और इसका भगवान् शिवद्वारा पान (आदि. १८। कालतोयक-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९।४७)। ४१-४३)। भीमसेनके भोजनमें दुर्योधनद्वारा कालकूट कालद-एक भारतीय जनपद (भीष्म. ९। ६३)। मिलाया गया था (आदि. १२७ । ४५-४८ वन० कालदन्तक (कालदन्त)-वासुकि कुलमें उत्पन्न एक १२ । ८.)। (२) एक पर्वत, जो पत्नियोसहित नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें जल मरा था (आदि. तपस्याके लिये जाते समय राजा पाण्डुको मार्गमें मिला ५७।६)। था (आदि. ११८ । ४७-४८)। श्रीकृष्णको इन्द्र- कालनेमि-एक महाबली दानव.
कालनेमि-एक महाबली दानव, जो इस भूतलपर कंस प्रस्थसे गिरिव्रज जाते समय मार्गमें कोई कालकूट पर्वत
नामसे उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । ६७)। लाँघना पड़ा था (सभा० २० । २६-२७)। यहाँ
कालपथ-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक दुर्योधनकी सेनाका पड़ाव पड़ा था (उद्योग०१९।३०)।
(अनु. ४ । ५०)। (३) उत्तराखण्ड में कालकूट पर्वतके आसपासका प्रदेश, जिसे अर्जुनने उत्तर-दिग्विजयके समय जीता था ( सभा०
कालपर्वत-(१) लङ्काके समीप समुद्रतटवर्ती एक पर्वत २६ । ४)।
(वन० २७७ । ५४)। (२) एक पर्वत, जो स्वप्नमें
श्रीकृष्णसहित शिवजीके पास जाते हुए अर्जुनको मार्गमें कालकेय ( कालखंज)-(कालका अथवा ) कालाके पुत्र, हिरण्यपुरनिवासी दानव । इसका अर्जुनके साथ युद्ध
मिला था (द्रोण० ८० । ३१)। और उनके द्वारा इसका संहार (आदि०६५। ३५, कालपृष्ठ-एक नाग, जो त्रिपुरविनाशके समय शिवजीके वन० १७३ | १९-५५, उद्योग० १५८ । ३०, द्रोण. रथमें जुते हुए घोड़ोंके केसर बाँधनेके लिये रस्सी बनाया ५१ । १६; कर्ण०७९ । ६२)। इन सबने वृत्रासुरकी गया था (कर्ण० ३४ । २९-३०)। अध्यक्षतामें देवताओंपर चढ़ाई की थी (वन० १००। कालमख-'कालमुख' नामवाली एक विशेष जातिके लोग,
जो मनुष्य और राक्षस दोनोंके संयोगसे उत्पन्न हुए थे । कालकोटि-नैमिषारण्यके अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ सहदेवने दक्षिण-दिग्विजयके समय उन सबपर भी विजय (वन० ९५। ३)।
प्राप्त की थी (सभा० ३१ । ६७)। कालखंज ( कालकंज)-असुरवंशकी कन्या कालकाके कालयवन-एक असुरभावापन्न यवन, जोश्रीकृष्णद्वारा मारा
पुत्र कालकंज या कालखंज कहे गये हैं, ये ही कालकेय गयाथा (सभा०३८।२९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ भी हैं, इनकी संख्या लाखोंके लगभग थी, इनकी ८२४, कालम २ द्रोण. १९१६-१८)।यह गर्गाचार्यके
म० ना०९
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