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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपरिचरवसु (४४) उम्लोचा सिद्धिके हेतु याजके समीप जाने के लिये उन्हें आदेश देना। यज्ञशिष्ट अन्नके भोक्ता, सत्यपरायण और अहिंसक थे, (आदि० १६६। १३-२०) । इनके द्वारा याजकी इन्होंने सब कुछ भगवान्को समर्पित कर दिया था। इन्हें हीन वृत्तिका वर्णन (आदि. १६६ ।।५-१९)। इन्द्रदेव अपने साथ एक शय्या और आसनपर बिठाते थे द्रोगविनाशक पुत्रेष्टि-यज्ञमें सहयोग देने के लिये इनको (शान्ति०३३५ । १७-२६)। इनके यज्ञका आरम्भ याजकी प्रेरणा ( आदि० १६६ । ३२)। (याज और) (शान्ति. ३३६ । ५ ) । इनके यज्ञकी समाप्ति उपयाजकी तपस्यासे द्रपदको द्रौपदी एवं धृष्टद्युम्नकी (शान्ति० ३३६ । ६.)। अजका अर्थ बकरा बतानेके प्राप्ति (सभा.८.। ४५)। कारण ऋषियों के शापसे इनका पातालमें प्रवेश (शान्ति. उपरिचरवसु-एक प्राचीन पुरुवंशी राजा, जो नित्य धर्म ३३७ । १३-१६)। देवताओंद्वारा इन्हें वर-प्राप्ति परायण थे (आदि० ६३ ।।) । इन्द्र की आज्ञासे (शान्ति• ३३७ । २४-२७)। भगवत्कृपासे गरुडने उन्होंने चेदिदेशका राज्य स्वीकार किया (आदि. ६२ । इन्हें आकाशचारी बनाया (शान्ति० ३३७ । ३७)। २)। इन्द्र के द्वारा इनके प्रति चेदिदेशकी प्रशंसा (आदि. इनका ब्रह्मलोकगमन (शान्ति० ३३७ । ३८)। ६३ । ८-११) । देवराजद्वारा इन्हें सर्वज्ञ होनेका वर- उपवेणा-एक नदी, जो अग्निकी जननी मानी जाती है दान (आदि० ६३ । १२) । इनको देवेन्द्रके द्वारा ( किसी-किसीके मतमें यह सम्भवतः दक्षिणभारतकी दिव्य विमान, बाँसकी छडी एवं वैजयन्तीमालाकी भेंट कृष्णवेणा या कृष्णा नामक नदीकी एक शाखा है।) (आदि०६३ । १३-७)। इनका बाँसकी छडीको (वन० २२२ । २४ )। धरतीमें गाड़कर इन्द्रपूजाकी प्रथा चलाना (आदि०६३। उपश्रुति-उत्तरायणकी अधिष्ठात्री देवी। इन्होंने ही कमल१८-१९)। हंसका स्वरूप धारण करके इन्द्रका इनकी नालकी ग्रन्थिमै इन्द्राणीको इन्द्रका दर्शन कराया था की हुई पूजा ग्रहण करना एवं अपनी पूजाका महत्त्व बत- (आदि. १६६ । ५६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ लाना ( आदि० ६३। २२-२५ )। उपरिचरवसुने ४८३)। इनकी सहायतासे शचीकी इन्द्रसे भेंट (उद्योग चेदिदेशमें ही रहकर इस पृथ्वीका धर्मपूर्वक पालन किया १४ । १२-१३)। (आदि०६३।२८)।इनके बृहद्रथ, प्रत्यग्रह, कुशाम्बु, उपसन्ध-निकम्भ दैत्यका पुत्र । सुन्दका भाई। ये दोनों माबेल्ल तथा यदु नामके पाँच पुत्र थे (आदि० ६३ । भयंकर और क्रूर हृदयके थे (आदि० २०८ । २-३)। ३०-३१ )। इनका उपरिचर' नाम होनेका कारण इन दोनों भाइयोंके पारस्परिक प्रेमका वर्णन (आदि. (आदि० ६३। ३४ ) । इनकी राजधानीके समीप २०८ । ४-६)। त्रिभुवनपर विजय पानेके लिये विन्ध्यप्रसिद्ध नदी 'शुक्तिमती' बहती थी (आदि०६३ । ३५)। पर्वतपर इन दोनों की उग्र तपस्या (आदि० २०८।७)। इनके द्वारा कोलाहल, पर्वतपर पैरसे प्रहार ( आदि. इनकी तपस्या में देवताओंका विघ्न डालना ( आदि. ६३ । ३६)। इनके द्वारा शुक्तिमतीकी पुत्री गिरिका' २०८ । ११)। इन दोनोंको अपने भाईके अतिरिक्त का पाणिग्रहण (आदि० ६३ । ३९)। पितरोंकी आज्ञा किसी दूसरेसे न मरने का ब्रह्माजीद्वारा वरदान (आदि. का पालन करने के लिये हिंसक पशुओंको मारनेके हेतु इनका २०८ । २४-२५)। त्रिभुवन में इन दोनों के अत्याचार वनमें जाना ( आदि०६३ । ४१-४२)। श्येनपक्षीके (आदि० २०९ अध्याय)। तिलोत्तमाके कारण इन द्वारा आनी पत्नी गिरिकाके लिये इनके द्वारा अपना दोनों भाइयोंकी एक-दसरेके हाथसे गदायुद्ध में मृत्यु वीर्य भेजना (आदि०६३ । ५४)। बाजोंके पारस्परिक (आदि० २११ । १९)। युद्धसे इनके वीर्यका यमुनाजीमें गिर जाना ( आदि. उपावृत्त-भारतवर्षका एक जनपद (भीष्म०९ । ४८)। ६३ । ५८)। यमुनाजीमें गिरे हुए इनके वीर्यसे मत्स्यरूपधारिणी 'अद्रिका' नामक अप्सराद्वारा सत्यवती' एवं । उपेन्द्र भगवान् विष्णुका एक नाम (अनु. १४९ । 'मत्स्य' राजाका जन्म (आदि० ६३ । ५०-६१)। मछलीके पेटसे उत्पन्न हुए 'मत्स्य' नामक बालकका उपेन्द्रा-एक नदी, जिसका जल भारतके लोग पीते हैं इनके द्वारा ग्रहण एवं सत्यवतीको मल्लाहके हाथमें सौंपना (भीष्म० ९ । २७)। (आदि०६३ । ६३-६७)। यमकी सभामें ये विराज- उमा-पार्वती देवी (वन. ३७ । ३३ ) (विशेष पार्वती' मान होते हैं (सभा०८।२०)। ये इन्द्रके सखा, शब्द देखिये।) नारायणके भक्त, धर्मात्मा, पितृभक्त तथा आलस्यरहित उम्लोचा-एक अप्सरा, जो अर्जुनके जन्म-महोत्सवपर अन्य थे, श्रीनारायणदेवके वरसे इन्हें साम्राज्य प्राप्त हुआ था. अप्सराओंके साथ नाचने-गाने आयी थी (आदि. वे वैष्णवशास्त्रके अनुसार भगवान्का पूजन करते थे, १२२ । ६५)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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