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उपनन्द-(१) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० ६७ । ९६) । भीमसेनद्वारा इसका वध (कर्ण. ५१ । १९)। (२) नागलोकका एक नाग (उद्योग १०३ । १२)। (३) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.
सुरक्षा (वन० १५। ९)। वृष्णिवंशियोंसे विदा ले उद्धवजी अपने तेजसे पृथ्वी-आकाशको व्याप्त करते हुए प्रभासक्षेत्रसे अन्यत्र चले गये। वृष्णिकुलके भावी विनाशको जाननेवाले भगवान् श्रीकृष्णने उन्हें वहाँ नहीं
रोका ( मौसल०३।१:-१३)। उद्भव-एक राजा, जिन्हें पाण्डवों की ओरसे रण-निमन्त्रण
भेजा गया ( उद्योग०४।१३)। उद्भस-उद्भसदेशीय योद्धा, जिन्हें साथ लेकर नकुल सहदेव
धृष्टद्युम्ननिर्मित क्रौञ्चव्यूहकी बायीं पाँखके स्थानमें खड़े हुए थे (भीष्म० ५० । ५३)। उद्भिद-कुशद्वीपके प्रथम वर्ष (खण्ड) का नाम (भीष्म
१२ । १२)। उद्योगपर्व-महाभारतका एक प्रधान पर्व । उद्रपारक-धृतराष्ट्र नागके कुलमें उत्पन्न एक सर्प, जो
जनमेजयके सर्पसत्र में दग्ध हो गया था (आदि० ५७ । १७)। उद्धह-(१) क्रोधवशसंशक दैत्यके अंशसे उत्पन्न एक
क्षत्रिय राजा (आदि. ६७ । ६४)। (२) वायुके सात भेदोंमेसे तीसरा (शान्ति० ३२८ । ४०)। उन्माथ-यमराजद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमें
एक । दूसरेका नाम प्रमाथ था (शल्य०४५।३०)। उन्माद पार्वतीद्वारा स्कन्दको दिये गये पार्षदोंमेंसे एक
(शल्य. ४५ । ५१)। उन्मुच-दक्षिण दिशामें रहनेवाले एक ब्रह्मर्षि (शान्ति.
२०८ । २८)। उपकीचक-कालेय राक्षसोंके अंशसे उत्पन्न । कीचकके
छोटे भाई, कीचकके मारे जानेपर ये द्रौपदीको बाँधकर इमशानमें ले गये थे। इनकी संख्या १०५ थी, भीमसेनद्वारा इनका वध ( विराट० २३ । ५-२८)। उपकृष्णक-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. १५ । ५७)। उपगहन-महर्षि विश्वामित्रका एक ब्रह्मवादी पुत्र (अनु.
४ । ५६)। उपगिरि-उत्तर दिशाका एक पर्वतीय जनपद (सभा०
२७ । ३)। उपचित्र-धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० ६७ । ९५)। (भीष्म० ५१ । ८ में भी इसका नाम आया है )।
भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण० १३६ । २२)। उपजला-एक नदी, जहाँ यज्ञ करके उशीनरने इन्द्रसे भी
ऊँचा स्थान प्राप्त किया था (वन० १३० । ३१)। उपत्यक-एक भारतीय जनपद, जो पर्वतकी तराई में स्थित है (भीष्म० ९५५)।
उपप्लव्य-विराट राज्यका एक उपनगर, जो राजधानीके
पास ही था; यहाँ अज्ञातवासके बाद पाण्डवोंने निवास किया था (विराट. ७२ । १४) । ( इसका नाम
अनेक बार आया है।) उपमन्यु-(१) आयोदधौम्य ऋषिके शिष्य ( आदि.
३ । २२--३३)। इनकी गुरुभक्ति ( आदि.३। ३५-४९) । इनका आकके पत्ते खानेसे अन्धा होकर कुएँ में गिरना और गुरुकी आज्ञासे इनके द्वारा अश्विनीकुमारोंकी स्तुति (आदि० ३ । ५०-६८)। इनको अश्विनीकुमारका वरदान ( आदि० ३ । ७३ ) । इनको गुरुदेवका आशीर्वाद (आदि० ३ । ७६-७७)। (२) सत्ययुगके महायशस्वी ऋषि । व्याघ्पादके पुत्र । धौम्यके बड़े भाई (अनु० १४ । ११-१२; अनु०१४ । ५५)। इनके आश्रमका वर्णन (अनु० १४ । ४५---६३)। श्रीकृष्णका इन्हें प्रणाम करना और उपमन्युका उन्हें पुत्र-प्राप्ति का विश्वास दिलाते हुए महादेवजीकी आराधनाके लिये कहना एवं शिवजीकी महिमा बताना ( अनु० १४ । ६४-११०)। इन्होंने बाल्यकालमें मातासे दूध-भात माँगा, माने आटा घोलकर दोनों भाइयोंको दूधके नामपर दे दिया । फिर इन्होंने पिताके साथ किसी यजमानके यहाँ जाकर दूधका स्वाद चखा और घर आकर मासे कहा, 'तुमने जो दूध कहकर दिया, वह दूध नहीं था ।' मॉने कहा, 'भगवान् शिवकी कृपाके बिना दूध-भात कहाँ ?' उन्होंने पूछा, 'महादेवजी कौन है ? फिर माताने उनकी महिमा बतायी, जिससे वे शिवाराधनामें प्रवृत्त हुए (अनु० १४ । ११५-१६७)। इनकी तपस्या, शिवभक्ति, स्तुति-प्रार्थना, शिवदर्शन और वरप्राप्ति (अनु. १४ । ३६८-३७७)। इनका श्रीकृष्णसे तण्डिद्वारा की गयी शिव-स्तुतिका वर्णन (अनु. १६ अध्यायमें)। इनके द्वारा श्रीकृष्णसे शिवसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन
(अनु० १७ अध्यायमें)। उपयाज-परम शान्त, ब्रह्माके तुल्य प्रभावशाली, संहिताके स्वाध्यायमें तत्पर, कश्यप गोत्रमें उत्पन्न, सूर्यदेवके भक्त एवं सुयोग्य एक श्रेष्ठ महर्षि, जो याजके छोटे भाई थे (आदि. १६६ । ७-१०)। द्रोणविनाशक पुत्रकी प्राप्तिके लिये इनसे द्रुपदकी प्रार्थना और एक अर्बुद धेनुका प्रलोभन (आदि० १६६ । १०-१२)। इनका द्रुपदकी प्रार्थनाको अस्वीकार करना और अपनी अभीष्ट
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