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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरपाञ्चाल उद्धव विस्तारपूर्वक वर्णन किया है (उद्योग० १११ अध्याय)। प्राप्त की (सभा० २७ । १६) । (२) दक्षिण मूर्तिमती उत्तर दिशाके द्वारा अष्टावक्रका स्वागत दिशाका एक जनपद (भीम० ९।६१)। (अनु० अध्याय १९ से २१)। उदपानतीर्थ-सरस्वती नदीके जलमें स्थित एक प्राचीन उत्तरपाञ्चाल-एक जनपद, जहाँ पृषत्की मृत्युके बाद तीर्थ, इसकी उत्पत्तिकी कथा (शल्य. ३६अध्याय)। पदको राजा बनाया गया (आदि० १२९ । ४३)। उदयगिरि-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ एक दिन संध्योपासना आगे चलकर उत्तरपाञ्चाल एवं उसकी राजधानी करनेसे बारह वर्षातक संध्योपासना करनेका फल मिलता अहिच्छत्रापर द्रोणका अधिकार हो गया। यह प्रदेश है(वन गङ्गाके उत्तर तटपर था (आदि. १३७ । ७०-७६)। उदयाचल-उदयगिरि (द्रोण. १८४।४७)। उत्तरपारियात्र-एक पर्वत, जहा अर्जुनके लिये शुभाशंसा की उदरशाण्डिल्य-इन्द्रसभामें विराजमान एक ऋषि गयी थी ( वन० ३१३ । ८)। (सभा०७।१३)। उत्तरमानस-एक तीर्थ, यहाँकी यात्रा करनेसे भ्रूणहत्यारा उदराक्ष-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४.५। ६३)। भी पापसे मुक्त हो जाता है ( अनु० २५। ६०)। उदानवायु-प्राणवायुके पाँच भेदोमसे एक (वन. उत्तरा-मत्स्यनरेशकी कन्या, अभिमन्युकी पत्नी और परीक्षित- २१३ । १२)। की माता ( आदि० ९५। ८३-८४ )। उत्तराकी शिक्षा- उदापेक्षी-विश्वामित्रका एक ब्रह्मवादी पुत्र ( अनु. के लिये अर्जुनने अपने को रखनेका राजा विराटसे अनुरोध ४।५९)। किया । विराटने कहा, तुम उत्तराको नृत्यकी शिक्षा दो। उहालक एक ऋषि, जो जनमेजयको सर्पसत्रके सदस्य थे फिर अर्जुनने उत्तराको नृत्य-गीत सिखाना आरम्भ किया (आदि० ५३.७)। ये ही आयोदधौम्य ऋषिके शिष्य (विराट. ११ । ८-१२)। उत्तराका बृहन्नलासे आरुणि पाञ्चाल हैं, जो आगे चलकर उद्दालक नामसे उत्तरका सारथि बनने के लिये कहना (विराट.३७ । प्रसिद्ध हुए। ये इन्द्र की सभामें भी उपस्थित होते थे ५-१९)। वृहन्नलासे गुड़िया बनानेके लिये कौरवोंके (सभा० ७ । १२)। उद्दालकके पुत्र का नाम श्वेतकेतु वस्त्र माँगना (विर.ट० ३७ । २८-२९)। अभिमन्युके और कन्याका नाम सुजाता था। उद्दालकने अपनी कन्या साथ उत्तराका विवाह (विराट ७२ । ३५)। पतिकी सुजाताका व्याह प्रिय शिष्य कहोडसे किया था, जिसके मृत्युके शोकसे दुखी होकर मूछित होना (द्रोण. गर्भसे अष्टावक्रका जन्म हुआ था (वन० १३२ । ७८ । ३७)। श्रीकृष्णद्वारा उसे आश्वासन (द्रोण. १-९)। उद्दालकके यज्ञमें उनके चिन्तन करनेपर ७८ । ४०-४२)। युद्ध स्थलमें अभिमन्युको मरा हुआ सरस्वती नदीका प्राकट्य हुआ थाउस समय उनकी उस देखकर विलाप करना (स्त्री०२० । ४-२८)। अभि धाराका नाम 'मनोरमा' हुआ था (शल्य० ३८ । मन्यके लिये शोक करना और व्यासजीद्वारा इसका २२-२५)। इन्होंने अपने पुत्र श्वेतकेतुको ब्राह्मणोंके समझाया जाना ( आश्व० ६२८-१२) । वनको जाते प्रति उसके कपटपूर्ण व्यवहारके कारण निकाल दिया था हुए धृतराष्ट्र के पीछे कुछ दूरतक जानेवाली स्त्रियों में उत्तरा (शान्ति० ५७ । १०)। भी थी ( आश्रम० १५।१०)। उहालकि-प्राचीन ऋषि । नाचिकेतके पिता ( अनु०७१। उत्तरापथ-उत्तर भारत (शान्ति. २०७ । ४३)। २-३)। नाचिकेतपर रुष्ट होकर इनका शाप देना उत्तेजनी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य०४६ । ६)। (अनु० ७१ । ७) । पुत्रशोकसे संतप्त होकर इनका पृथ्वीपर गिरना (अनु० ७१ । ९)। भरकर जीवित उत्पलावन-पंजाबका एक तीर्थ, जहाँ विश्वामित्रने अपने पुत्र के साथ यज्ञ किया था (वन० ८७ । १५)। यहाँ हुए पुत्रसे उसके विषयमें पूछना ( अनु० ७१ । १३)। स्नानका फल ( अनु० २५ । ३४)। उद्धव-एक यादव । श्रीकृष्णके सखा एवं मन्त्री । इनका उत्पलिनी-नैमिपारण्यके समीप बहनेवाली एक नदी, जिसका परिचय महाभारतमें इस प्रकार है-उद्धवजी द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे (आदि. १८५ । १८)। ये रैवतकदर्शन अर्जुनने किया (आदि० २१४ । ६)। पर्वतके उत्सवमें सम्मिलित थे ( आदि० २१८ । ११)। उत्पातक-यहाँ स्नान करके उपवास करनेसे नरमेधके फलकी बृहस्पति के शिष्य महाबुद्धिमान् उद्धवजी सुभद्राके लिये प्राप्ति होती है (अनु० २५ । ४१)। दहेज लेकर इन्द्रप्रस्थमें गये थे (आदि० २२० । ३०)। उत्सवसंकेत-(१) लुटेरोंके दल, जिनपर अर्जुनने विजय शाल्वके चढ़ाई करनेपर इनके द्वारा द्वारका नगरीकी For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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