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उरग
उलूपी
उरग-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९/५४ )। ___४०)। द्रोगाचार्य के मारे जानेपर युद्धस्थलसे भागना उरगा-उत्तर भारतकी एक पर्वतीय राजधानी, जहाके (द्रोण. १९३। १४)। इसके द्वारा युयुत्सुकी राजा रोचमान को अर्जुनने परास्त किया था (सभा. पराजय (कर्ण० २५ । ९-११)। सहदेवद्वारा इसकी २७ । १९)।
पराजय (कर्ण० ६१। ४३-४४)। नकुलके साथ उर्वरा-बुबेरभवनकी एक अप्सरा, जिसने अन्य नर्तकियोंके
इसका युद्ध (शल्य. २२॥ २८-२९)। सहदेवके द्वारा साथ अष्टावको स्वागतमें नृत्य किया था (अनु. १९)
इसका वध ( शल्य० २८ । ३२-३३)। महाभारतमें ४४)।
आये हुए इसके नामान्तर-शाकुनि, कैतव, सौबलसुत
और कैतव्य । (२) एक यक्ष (या नाग), जिसके उर्वशी-(१) एक प्रसिद्ध सर्वश्रेष्ठ अप्सरा (आदि.
साथ गरुडने युद्ध किया था ( आदि० ३२॥ १८-१९)। ७४ । ६८ वन० ४३ । २९)। उर्वशीके गर्भसे राजा
(३) उत्तरभारतका एक जनपद, जिसके राजा बृहन्तपुरूरवाद्वारा छः पुत्र उत्पन्न हुए-आयु, धीमान्,
को अर्जुनने परास्त किया था (सभा०२७। ५)। अमावमु, दृढायु, वनायु और शतायु (आदि० ७५ ।
(४) एक प्राचीन ऋषि, जो विश्वामित्रके पुत्र हैं २४-२५)। यह स्वर्गकी विख्यात ग्यारह अप्सराओंमें
(अनु. ४ । ५१)। ये शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मके ग्यारहवीं है, जिसने अर्जुनके जन्मोत्सवपर गीत गाया था (आदि. १२२ । ६६) । कुवेरकी सभा नृत्य-गान
पास आये थे (शान्ति० ४७ । ११)। करनेवाली अप्सराओंमें यह भी है (सभा० १०।११)
उलूकदूतागमनपर्व-उद्योगपर्वका एक अवान्तरपर्व(अध्याय इसकी अर्जुनके पास जाने के लिये चित्रसेनसे बात ( वन १६० से १६४ तक)। ४५। १४-१६)। इसका कामपीड़ित होकर अर्जनके उलूकाश्रम-एक तीर्थ ( उद्योग. १८६ । २६)। पास पहुंचना (वन० ४६ । १६) । उर्वशीका अर्जुन- उलूत-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५४ )। के निकट अपने आनेका कारण बताना और अपनी काम- उलूपी-ऐरावत-कुलोत्पन्न कौरव्य नागकी पुत्री ( आदि. विवशता प्रकट करना (वन० ४६ । २२-३५)। २१३ । १२)। इसके द्वारा अर्जुनका हरिद्वारसे नाग'स्वर्गकी अपराओंका किसीके साथ पर्दा नहीं है, उनके
लोकमें आकर्षण (आदि. २१३। १३)। अर्जुनसाथ समर्कसे दोष नहीं होता, ऐसा कहकर उर्वशीका
द्वारा इसके गर्भसे इरावान् का जन्म(आदि० २१३ । ३६ अर्जुनसे समागमके लिये प्रार्थना करना (वन० ४६ । के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। इसका बभ्रुवाहनको अर्जुनसे ४२-४४ ) । कामनापूर्ति न होनेपर इसके द्वारा अर्जुनको । युद्ध करने के लिये उत्साहित एवं उत्तेजित करना (आश्च० शाप (वन० ४६ । ४९-५०)। शुकदेवजीकी परमपद- ७९ । ११-१२)। संजीवन मणिके द्वारा अर्जुनको प्राप्तिके सभर आश्चर्यचकित होना (शान्ति० ३३२ । जिलाना ( आश्व० ८० । ५०-५२)। अर्जुनके पूछने२१-२४ )। (२) भगीरथके ऊपर बैठने के कारण पर युद्ध में अपने आनेका कारण बताकर उनको मेले गङ्गाजीका एक नाम (द्रोण०६०।६)।
हुए शाप और उससे छूटनेका वृत्तान्त बताना तथा उससे
विदा लेकर अर्जुनका अश्वके पीछे जाना ( आश्व० उर्वशीतीर्थ-एक तीर्थ, जिसकी यात्रा करके मनुष्य इस भूतलपर पूजित होता है (वन० ८४ | १५७)। यहाँ
८१ अ० में)। बभ्रुवाहन और चित्राङ्गदाके साथ इसका
हस्तिनापुर आगमन (आश्व० ८७ १२६-२७)। इसके स्नानका फल ( अनु० २५ | ४६)।
द्वारा कुन्ती और द्रौपदीके चरण छूना, सुभद्रासे मिलना उर्वी-पृथ्वीका ना- यह नाम पड़नेका कारण (शान्ति.
तथा नाना प्रकार के उपहार पाना (आश्व० ८८ । २०८ । २८)।
१-५) । इसके द्वारा गान्धारीकी सेवा (आश्रम. १ । उलूक- (१) शकुनिका पुत्र ( उद्योग० ५७ । २३)। २३)। यह प्रजा के साथ प्रतिकूल बर्ताव नहीं करेगी
यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था ( आदि. १८२ । ऐसा प्रजाजनोंका विश्वास (आश्रम० १०। ४६)। २२)। दुर्योधन के कहनेसे पाण्डवोंके शिविर में जाकर संजयका ऋषियोंसे इसका परिचय देना (आश्रम०२५ । भरा सभाम दुयाधनका संदेश सुनाना (उद्योग० १६१ ११)। पाण्डवोंके महाप्रस्थान के पश्चात् उलूपीका गङ्गाअ० में)। दुधनको पाण्डवोंके संदेश सुनाना जीमें प्रवेश ( महाप्र. १ । २७)। महाभारतमें आये (उद्योग. १६३ । ५१-५३)। प्रथम दिनके युद्ध में हुए उलूपीके नाम-भुजगात्मजा, भुजगेन्द्रकन्या, चेदिराजके साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ४५। भुजगोत्तमा, कौरवी, कौरव्यदहिता, कौरव्यकलनन्दिनी, ७८-८०)। सहदेवका इसपर आक्रमण (भीष्म• ७२।। पन्नगनन्दिनी, पन्नगसुतापन्नगात्मजा, पन्नगेश्वरकन्या ५) । अर्जुनद्वारा इसकी पराजय (द्रोण. १७१। पन्नगी, उरगात्मजा ।
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