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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उल्मुक ( ४६ ) ऋक्ष उल्मुक-एक वृष्णिवंशी महारथी राज कुमार, जो युधिष्ठिरके आनयन (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, राजसूय यज्ञमें आया था (सभा०५ | १६) । प्रभास- पृष्ट ८२७ से ८२४ तक)। क्षेत्र पाण्यासे मिलने के लिये आले हुए वृष्णिवंशियोमे उप-(१) पश्चिम दिशामें निवास करनेवाले एक ऋषि उल्मुक भी थे (वन० १२० । १९)। धृतराष्ट्रको (शान्ति० २०८ । ३०)। (२) भगवान् शिवका युद्ध में उल्मुक आदि वृष्णिवंशी वीरोके आनेकी सम्भावना एक नाम (अनु. १७ । १०५ )। (३) यदुवंशी से भय (द्रोण०११ । २८)। वृजिनीवान्के पुत्र । चित्ररथके पिता (अनु० १४७।२९)। उशव-यमराजकी सभामें बैठनेवाले एक राजा ( सभा० उष्ट्रकर्णिक दक्षिण भारतका एक जनपद, जिसे सहदेवने ८।२६)। दूतोंद्वारा ही वशमें कर लिया था (समा० ३१ । ७१)। उशना महर्षि ( भृगु ) के पुत्र शुक्राचार्य, ये असुरोंके उष्णदेश-क्रौञ्चद्वीपके अन्तर्गत क्रौञ्चपर्वतके निकट मनोनुग उपाध्याय थे। इनका एक नाम उशना भी है (आदि० देशके बाद स्थित एक देश (भीष्म० १२ । २१)। ६५। ३६ )। (विशेष देखिये शुक्र ।) उप्णीगङ्ग-एक प्राचीन तीर्थ (वन. १३५ । ७)। उशीनर-(१) एक वृष्णिवंशी एवं पराक्रमी राजमार, उष्णीनाभ-एक विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३४)। जो द्रौपदोके स्वयं में गया था (आदि० १८५।२०)। (२) शिबिदेशके राजा, यम-भाके सदस्य हैं (सभा० ८।१४)। इन बाजरूपा इन्द्रको अग्निरूपा कबूतर- ऊजयोनि-विश्वामित्र ब्रहावादा पुत्रामस एक का रक्षाके लि; अपना मांस काटकर देना (वन० ४। ५९)। १३. । .५ से १३३ । २८ तक)। इन्द्र और ऊर्णनाभ ( सुदर्शन )-धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० अग्निद्वारा राजाका अभिनन्दन (वन० १३१ । ३०. ६७ । ९६ )। भीमसेनद्वारा इसका वध ३.)। इनकार्गमन (वन० १.५। ३२-३३)। (द्रोण० १२७।६७)। इनका गालवको नाक रूपमें दो सौ घोड़े देकर यथातिकन्या ऊर्णाय-एक देवगन्धर्व, जो अर्जनके जन्मोत्सव में आया माधवोको स्वीकार करना (उद्योग. ११८१५)। था ( आदि० १२२ । ५५ )। इसका मेनकाके प्रति इनको महाराज शुनकसे खड्नकी प्राप्ति (शान्ति. १६६ । अनुराग ( उद्योग० ११७ । १६)। ७९ ) । ये शरणागतव सल शिबिके पिता थे । ऊर्ध्वबाह-दक्षिण दिशामें निवास करनेवाले एक ऋषि, जो माधवीके गर्भसे शिवि नामक पुत्रकी प्राप्ति (उद्योग धर्मराजके ऋत्विज हैं ( अनु० १५० । ३४-३५, अनु० ११८४२०)। इन्हें गोदानसे स्वर्गकी प्राप्ति हुई (अनु० १६५ । ४०)। ७६ । २५)। (३) काशिराज वृषादभि, इनकी ऊर्ध्वभाक-एक अग्नि, जो बृहस्पतिके पश्चम पुत्र हैं शरणागतरक्षाके प्रसङ्ग में कबूतर और बाजकी कथा (वन० २१९ । २०)। ( अनु० ३२ अमें )। ये उशीनर और वृषादर्भि दोनों नामोंसे विख्यात थे और काशी जनयदके राजा थे , ऊर्ध्वरेता-एक महर्षिः जो युधिष्ठिरका बड़ा सम्मान करते थे (वन०२६ । २४)। (अनु० ३२ । २२-३७)। (४) एक देश, जहाँके ऊर्ध्ववेणीधरा-स्कन्द की अनुचरी मातृका (शल्य. निवासी सैनिक अर्जुनके द्वारा मारे गये थे ( कर्ण० ५। । ४६ । १८)। ४७)। इस देशके वीर सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रों में कुशल और बलशाली होते हैं (शान्ति. १०१ । ४)। ऊर्व ( और्व )-एक तेजस्वी भृगुवंशी ऋषि, जिन्होंने त्रिलोकीके नाशके लिये एक भयंकर अग्निकी सृष्टि की उशीनर देशके क्षत्रिय ब्राहाणोंकी कृपादृष्टिसे वञ्चित और उसे समुद्र में डालकर बुझा दिया । ये च्यवनके पुत्र होनेके कारण शूद्र हो गये ( अनु० ३३ । २२-२३)। और ऋचीकके पिता थे (अनु० ५६ । १-७)। उशीरबीज-(१) उत्तराखण्डका एक पर्वत ( वन० ऊष्मप-पितरोंका एक गण, जो यमसभामें यमराजकी उपासना १३९ । १)। (२) हिमालयके पास उत्तर दिशाका स्थानविशेष, जहाँ महाराज मरुत्तका यज्ञ हुआ था करता है ( सभा० ८ । ३०)। (उद्योग० १११ । २३)। ऊष्मा-पाञ्चजन्य न मक अग्निके पुत्र (वन० २२१ । ४)। उषा-बाणासुरकी पुत्री, इसके साथ गुप्तरूपसे अनिरुद्धका विहार, बाणासुरद्वारा अनिरुद्धका निग्रह तथा श्रीकृष्ण- ऋक्ष (१)-महाराज अजमीढके द्वारा धूमिनीके गर्भसे द्वारा बाणासुरको जीतकर अनिरुद्ध एवं उषाका द्वारका उत्पन्न । इनके पुत्रका नाम संवरण था, जो कुरुवंशमें For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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