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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋक्षदेव ऋषभ प्रसिद्ध राजा हुए हैं (आदि. ९४।३१-३४)।(२) ऋतधामा-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम (शान्तिः पूरुवंशीय राजा अरिहके द्वारा सुदेवाके गर्भसे उत्पन्न । ३४२ । ६९)। इनकी पत्नीका नाम 'ज्वाला' एवं पुत्रका नाम मतिनार' ऋतुपर्ण-अयोध्याके एक राजा, जो इक्ष्वाकुकुलमें उत्पन्न था ( आदि० ९५ । २४-२५)। तथा उतविद्याके मर्मज्ञ थे और जिनके यहाँ नलका सारथि क्षदेव-शिखण्डीका पुत्र, इसके धोड़े सफेद और लाल वाणेय उनके जूएम पराजित हो जानेपर जाकर रहने लगा रंगके सम्मिश्रणसे पद्मके समान वर्णवाले थे (द्रोण. (वन०६६।२१-२२; ६० ।२५)। इनके द्वारा बाहुक २३ । २४-२५)। बने हुए राजा नलकी अपने यहाँ अश्वाध्यक्षके पदपर नियुक्ति ऋक्षवान-भारतवर्षके सात कुलपर्वतोंमेंसे एक (भीष्म (वन० ६७ । ५-७)। इनका दमयन्तीके द्वितीय खयं९। ११ वन० ६१ । २१ )। वरके लिये विदर्भदेशको प्रस्थान (बन०७१ ।२०)। इनका बाहुककी अश्वपंचालन-कलासे प्रभावित होना ऋक्षा-सोमवंशीय महाराज अजमीढकी पत्नी (आदि. (बन० ७१ । २४)। इनकी गणित-विद्याकी अद्भत ९५ ।३७)। शक्ति ( वन० ७२ । ७-११)। इनके द्वारा नलको ऋक्षाम्बिका-स्कन्दको अनुचरी मातृका (शल्य० ४६।१२)। द्यूत हृदयका दान (वन० ७२ । २९) । विदर्भनरेश ऋचीक-(१)-एक महर्षि, जो भृगुकुमार च्यवनके पुत्र थे भीमद्वारा इनका आतिथ्य-सत्कार ( वन० ७३ । २०)। ( वन० ९९ । ४२)। ये ही कल्पान्तरमें ही और्वके पुत्र इन्हें नलसे अश्वविद्याकी प्राप्ति तथा इनका अयोध्याको हुए, ये जमदग्निके पिता थे (आदि० ६६ । ४५-४७)। लौटना (वन० ७७ । १७-१९)। इन्होंने शुल्करूपमें महाराज गाधिको देने के लिये वरुणसे ऋतुस्थला-स्वर्गकी प्रधान ग्यारह अप्सराओंमेंसे एक, जिसने एक हजार अश्वोंकी याचना की थी (वन० ११५। अन्य अप्सराओं के साथ अर्जुनके जन्म-महोत्सवमें आकर २६-२७ )। इनका सत्यवतीके साथ विवाह (वन. नृत्य और गान किया था (आदि. १२२ । ६५-६६)। ११५ । २९ )। इनका परशुरामको क्षत्रियों के वधसे रोकना ( बन० ११७ । १० आश्व० २२ । २०)। ऋतेयु पश्चिम दिशानिवासी एक ऋषि, जो वरुणके सात इनका वरुणसे माँगकर सत्यवतीके शुल्क रूपमें गाधिको विजोंमें से एक है (अनु. १५०। ३६)। एक हजार श्यामकर्ण घोड़े देना ( उद्योग० ११९। ऋत्वा-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्मोत्सवमें उपस्थित ५-६ ) । गाधिपत्रो सत्यवतोके साथ इनका विवाह हुआ था (आदि. १२२ । ५७ )। (शान्ति० ४१ । ७)। इनका पुत्रोत्पत्तिके लिये चरु ऋद्धि-कुबेरकी पत्नी ( उद्योग. ११७ । ९)। देना ( शान्ति० ४९ । ९ )। माताके साथ चरुके ऋद्धिमान-एक महानाग, जो गरुडद्वारा मारा गया था उलट-फेर हो जानेपर अपनी पत्नी सत्यवतीके साथ संवाद ( शान्ति. ४९ । १८-२८ )। विश्वामित्रके भ-भूनामक देवताओंका गण, जो देवताओद्वारा भी जन्मप्रसंगमें पुनः इस कथाका वर्णन ( अनु० ४ अ०में )। आराधित होता है (वन० २६१ । १९, शान्ति०२०८। ऋचीकको शाल्वराज द्युतिमानसे राज्यका दान प्राप्त २२; अनु० १३७ । २५)। हुआ था ( अनु० १३७ । २३) । (२) विवस्वान्के ऋषभ-(१) धृतराष्ट्रके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो स्वरूपभूत बारह सूर्या से एक ( आदि० १ । ४२)। ( ३ ) सम्राट भरतके पौत्र एवं भुमन्युके पुत्र जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा था (आदि० ५७ । १७)। (२) एक वृषभरूपधारी राक्षस, जो मगधनरेश बृह( आदि० ९४ । २४)। द्रथद्वारा मारा गया और जिप्सको खालसे तीन चेयु पूरुको तीसरे पुत्र रौद्रावके द्वारा मिश्रकेशो अप्सराके नगाड़े बनाये गये ( सभा० २१ । ५६) । (३) गर्भसे उत्पन्न प्रथम पुत्र (आदि. ९४ । १०)। एक प्राचीन तपस्वो ऋषि, जो पहले कभी ऋषभअन्वग्भानु तथा अनाधृष्टि भी इन्हींके नाम थे, ये महान् । कूटपर रहते थे (वन० ११० । ८)। ये ब्रह्मसभामें विद्वान् तथा चक्रवर्ती सम्राट थे, इनके पुत्रका नाम ब्रह्माजीकी सेवामें उपस्थित होते हैं (सभा० ११ । २४)। ‘मतिनार' था ( आदि० ९४ । ११-१३)। ऋषभमुनिका सुमित्रको आशाके त्यागका उपदेश ऋण-चार प्रकारके ऋण (आदि० ११९ । १७ )। (शान्ति० १२५ अध्यायसे १२८ तक)। (४) इन ऋणोंके निराकरणकी आवश्यकता ( आदि. ११९ ।। दक्षिण-समुदतटवर्ती एक पर्वत, जहाँ गालव और १८-२०)। गरुड़को शाण्डिलीका दर्शन हुआ था ( उद्योग. ११२ । ऋत-ग्यारह रुमेंसे एक ( अनु० १५० । १२ )। २२; १६३।१)। पाण्डयदेशवर्ती यह पर्वत एक For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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