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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभकूट ( ४८ ) एकत्वचा पवित्र तीर्थ है, जहाँकी यात्रासे वाजपेय यज्ञके फल और आतिथ्य-सत्कार ( वन० १११ । १३ )। वेश्याको स्वर्गलोक सुलभ होते हैं (वन० ८५ । २१)। ब्रह्मचारी समझकर इनके द्वारा अपने पितासे उसके (५) एक राजा, जिन्हें भारतवर्ष बहुत प्रिय रहा है स्वरूप और आचरणका वर्णन (वन० ११२ अ०में)। (भीष्म० ९ । ७)। (६) एक राजा या राजकुमार, इनका राजा लोमपाद के यहाँ जाना (वन० ११३ । ८)। जो द्रोणनिर्मित गरुड-व्यूह के हृदयस्थानमें खड़ा किया लोमपादपुत्री शान्ता के साथ इन का विवाह ( वन० गया था (द्रोण. २०। १२)। (७) एक दैत्य ११३ । ११; शान्ति० २३४ । ३४ ) । महाभारतमें या दानव (शान्ति० २२७ । ५१)। आये हुए ऋष्यशृङ्गके नाम-काश्यप, कश्यपपुत्र और कश्यपात्मज । (२) एक राक्षस, जिसके पुत्रका नाम ऋषभकूट-एक पर्वत, जहाँ पहले कभी ऋषभ मुनिने तास्या अलम्बुष था (द्रोण० १०६ । १६)। की थी (वन० ११०। ८)। ऋषभतीर्थ-कोसला या अयोध्या में स्थित एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ उपवास करनेसे सहस्र गोदान और वाजपेय यज्ञका एकचक्र-कश्यप और दनुका पुत्र एक विख्यात दानव फल मिलता है (वन० ८५। १०-१)। (आदि. ६५ । २५)। ऋषभद्वीप-सरस्वतीतटवर्ती एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे एकचक्रा-एक प्राचीन नगरी, जहाँ कुन्तीदेवी अपने पाँचों देवविमान सुलभ होता है (बन० ८४ । १६०)। पुत्रोंके साथ कुछ कालतक एक ब्राह्मणके यहाँ टहरी थीं। ऋषिक-(१) एक राजर्षि, जो दानवोंके सरदार 'अर्क' पाण्डव यहाँ वेदाभ्यास-परायण ब्रह्मचारी बनकर माताके के अंशसे उत्पन्न हुए थे ( आदि. ६७ । ३२-३३)। साथ रहते थे (आदि.६।। २६-२७)। भीमने यहीं (२) एक उत्तरीय जनपद, जहाँ ऋषिकराजके साथ रहकर बकासुरको मारा था (आदि० ६१ । २१)। एकचका नगरीमें पाण्डवोंके जाने, एक मासतक रहने अर्जुनका भयानक युद्ध हुआ था (सभा०२७ । २५) और भीमद्वारा बकासुरके मारे जाने का विस्तृत वृत्तान्त भीष्म ९। ६४)। (आदि. १५५ अध्यायसे १६३ अध्यायतक)। ऋषिकुल्या-एक नदी एवं प्राचीन तीर्थ, जहाँ स्नान करके पापरहित मानव देवताओं और पितरोंकी पूजा करनेसे एकचन्द्रा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । ऋषिलोकमें जाता है (वन० ८४ । ४८-४९; भीष्म० ___३०)। ९। ४७)। एकचूडा स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ५)। ऋषिगिरि-मगधकी राजधानी गिरिव्रजके समीपवर्ती एक एकजट-स्कन्दके एक सैनिकका नाम ( शल्य० ४५ । पर्वत, जिसका दूसरा नाम 'मातङ्ग' है (सभा० २१। ५८)। २-३)। एकत-एक प्राचीन महर्पि, जो गौतमके पुत्र थे, इनके दो ऋष्यमूक-एक पर्वत, जिसके शिखरपर मार्कण्डेयजीने धनुर्धर भाई और थे-द्वित और त्रित । ये तेजस्वी महात्मा थे तो श्रीराम और लक्ष्मणका दर्शन किया था (वन० २५। भी एक बार इन्होंने त्रितसे हल किया । इस कथाका ९)। यहीं हनुमान्जी सुग्रीवके साथ रहे (वन० १४७ । वर्णन (शल्य० ३६ अ. में) । ये पश्चिम दिशाका ३०)। इसी ऋष्यमूकसे सटा हुआ पम्पासरोवर है आश्रय लेनेवाले ऋषि हैं (शान्ति. २०८ । ३.)। ( वन. २७९ । ४४ )। श्रीराम और लक्ष्मणका ऋष्य इन्होंने उपरिचर वसुके यज्ञमें सदस्यता ग्रहण की मूकपर जाना तथा सुग्रीव के साथ श्रीरामकी मैत्री ( वन. (शान्ति० ३३६ । ५-६)। ये तीनों भाई भगवान् २८. । ९-११)। नागयणके दर्शनके लिये वेतद्वीपमें गये थे । (शान्ति. ऋष्यत-(१) महर्षि विभाण्डकके पुत्र । मृगीके पेटसे ३३९ । १२)। इन्होंने अपने भाई त्रितको कुएँ में इनकी उत्पत्ति तथा ऋष्यशृङ्ग नाम पड़नेका कारण गिराया था ( शान्ति. ३४१ । ४६ ) । वाणशय्यापर (वन. ११० । ३७-३९) ।ये कश्यपगोत्री थे और पड़े हुए भीष्मजीके पास ये भी गये थे (अनु. २६ । तपस्या तथा इन्द्रियसंयमसे ही प्रतिष्ठित हुए थे ७)। ये तीनों भाई वरुणके सात ऋत्विजोंमें हैं और (शान्ति. २९६ । १४-१६ )। महर्षि ऋष्यशृङ्ग पश्चिम दिशामें रहते है (अनु. १५० । ३६, १६५। ब्रह्मसभामें बैठकर ब्रह्माजीकी उपासना करते हैं (सभा. ४२)। ११ । २३ ) । अपने आश्रमपर आयी हुई एक एकत्वचा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । वेश्याको ब्रह्मचारी मुनि समझकर इनके द्वारा उसका २४)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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