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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकपाद ( ४९ ) ओघरथ एकपाद-एक जनपद, जहाँके राजा और निवासी मनुष्य एकानङ्गा-यशोदा मैयाकी पुत्री । भगवान् श्रीकृष्णकी युधिष्ठिरके राजसूय-यज्ञमें आये थे और भीड़के कारण बहिन । यह वही कन्या है, जिसके निमित्तसे श्रीकृष्णने दरवाजेपर रोक दिये गये थे (सभा० ५१ । १७)। कंसका वध किया था (सभा० ३८ । २९ के बाद एकपाद्-भगवान् विष्णुका एक नाम (अनु० १४९ । ९५)। दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२०, कालम २)। एकरात्रतीर्थ -एक तीर्थ, जहाँ एक रात नियमपूर्वक सत्य- एडी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । १३)। वादी होकर रहनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है एरक-कौरव्य कुलोत्पन्न एक नाग, जो सर्पसत्रमें जलकर (वन० ८३ । १८२)। भस्म हो गया (आदि. ५७ । १३)। एकलव्य-(२)निषादराज हिरण्यधनुका पुत्र । इसका द्रोणा- एलापत्र-एक प्रमुख नाग, इसकी माता कद्र और पिता चार्यके पास धनुर्वेदके अध्ययनके लिये आगमन (आदि. कश्यप थे । इसके द्वारा माताके शापरी चिन्तित हुए १३१ । ३१ )। निषादपुत्र होनेके कारण द्रोणद्वारा वासुकिको देवताओंके प्रति ब्रह्माजी के द्वारा कहे हुए इसका प्रत्याख्यान (आदि० १३१ । ३२)। आचार्य शापोद्धारके उपायोंका वर्णन (आदि० ३८ । १-१९)। द्रोणकी मूर्तिमें गुरुभावना करके इसके द्वारा धनुर्विद्याका अभ्यास ( आदि० १३१ । ३४) । गुरुभक्तिके कारण ऐक्ष्वाकी-सम्राट भुमन्युकी पुत्रवधू एवं सुहोत्रकी पत्नी । इसकी बाणविद्यामें सफलता (आदि० १३१ । ३५)। महाराज सुहोत्रद्वारा इनके गर्भसे अजमीढ़, सुमीढ़ तथा पाण्डवोंके कुत्ते के मुँहको बाणोंसे भरकर इसका पाण्डवोंको पुरुमीढ़ नामक तीन पुत्र हुए थे (आदि० ९४ । विस्मयमें डालना ( आदि० १३१ । ४१)। पाण्डवों । २४-३०)। तथा कौरवोद्वारा इसकी प्रशंसा (आदि. १३१ । ४२)। ऐरावत-(१)समुद्रमन्थनके समय प्रकट हुआ एक हाथी, पाण्डवोंके प्रति इसका अपना परिचय देना (आदि०।३१। जो इन्द्र के अधिकारमें है (आदि० ५८ । ४०)। यह ४५)। इसका द्रोणाचार्यको अपने दाहिने हाथका अँगूठा क्रोधवशाकी पुत्री भद्रमनाका पुत्र है और यही देवताओं काटकर गुरुदक्षिणाके रूपमें देना (आदि. १३१ । का हाथी है ( आदि० ६६ । ६२-६३)। ( यही ५४ ) । द्रोणाचार्यका अर्जुनके हितके लिये इसका पूर्व दिशाका दिग्गज है। ) ऐरावत आदि चार दिग्गज अँगूठा कटवाना (द्रोण. १८१।१७) श्रीकृष्णका पुष्कर द्वीपमें भी रहते हैं (भीष्म० १२ । ३३)। अर्जुनके प्रति उसके पराक्रमका तथा अपने द्वारा इसके (२) कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न एक प्रमुख नाग वधके कारणका कथन (द्रोण. १८१ । १८-२१)। (आदि० ३५ । ५ )। इसके कुलमें उलूपीके पिता निषादराज एकलव्यके श्रीकृष्णद्वारा मारे जानेकी चर्चा कौरव्यका जन्म हुआ था ( आदि० २१३ । १८)। (उद्योग० ४८ । ७७; मौसल० ६ । ११)। (२) कश्यपवंशी नागोंमें इसकी गणना ( उद्योग० १०३ । क्रोधवशसंज्ञक दैत्यके अंशसे उत्पन्न एक राजा ११)। (३) एक असुर, जो भगवान् श्रीकृष्णद्वारा मारा (आदि० ६७ । ६३)। पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रण गया ( सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षि० पाठ, पृष्ट निमन्त्रण भेजा गया ( उद्योग० ४ । १७)। ८२५, कालम १)। एकलव्यसुत-एकलव्यका पुत्र, जिसने अश्वमेधके अश्वके ऐरावतखण्ड-शृङ्गवान् पर्वतसे उत्तर समुद्रके निकटका पीछे जाते हुए अर्जुन के साथ घोर युद्ध किया था। अर्जुनसे एक वर्ष (भीष्म०६ । ३७)। धृतराष्ट्र के प्रति संजयद्वारा पराजित होकर उसने उनका सत्कार किया (आश्व० इसका विशेष वर्णन (भीष्म० ८।१०-१५)। ८३ । ८-१०)। ऐल-इलानन्दन पुरूरवा, जो यमराजकी सभामें विराजमान एकशृङ्ग-सात पितरों से एक । ये तीन अमूर्त पितरोंके होते हैं (सभा० ८ । १६)। इन्होंने जीवन में कभी मांस अन्तर्गत हैं। ये सब-के-सब ब्रह्मसभामें ब्रह्माजीकी उपासना सेवन नहीं किया था ( अनु० ११५ । ६५)। ये सबेरे करते हैं (सभा० ११ । ४७-४८)। और सायंकाल स्मरण करनेयोग्य पुण्यात्मा नरेशोंमेंसे एक हैं (अनु. १६५ । ५२)। एकहंस तीर्थ-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे सहस्र गो ऐषीक-सौप्तिकपर्वका एक अवान्तर पर्व, अध्याय १० से दानका फल मिलता है ( वन० ८३ । २०)। अध्याय १८ तक। एकाक्ष-(१) कश्यप और दनुका पुत्र एक विख्यात दानव (आदि० ६५ । २९ )।(२) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५। ५८)। ओघरथ-ओघवान्के पुत्र ( अनु० २ । ३८)। (ओ) म. ना०७ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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