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ओघवती
ओघवती - ( १ ) एक नदी ( भीष्म० ९ । २२ ) । कुरुक्षेत्र में वसिष्ठके आवाहन करनेपर प्रकट हुई सरस्वतीका नाम ( शल्य० ३८ | २७ ) । भीष्म जी ओघवती के तटपर बाणशय्या पर पड़े थे ( शान्ति० ५० । ७) । ( २ ) ओघवान्की पुत्री (अनु० २ । ३८ ) । इसका अग्निपुत्र सुदर्शन के साथ विवाह ( अनु० २ । ३९ ) । अतिथिसत्कार के लिये ब्राहाणरूपधारी धर्मको आत्मसमर्पण ( अनु० २ । ५७ ७ ) । ओघवान् - ( १ ) कौरवपक्षका एक योद्धा ( कर्ण० ५
४२) । (२) नृगके पितामह ( अनु० २ । ३८ ) । ओडू- एक प्राचीन देश, जहाँके राजा भेंट देनेके लिये युधिष्ठिरके यज्ञमें पधारे थे ( सभा० ५१ । २३ ) ।
( ५० )
औक्थ्य- एक साम ( वन० १३४ | ३६ ) | औदका - औदका उस स्थानका नाम है, जहाँ नरकासुर ने सोलह हजार कन्याओं को कैद कर रक्खा था। नरकासुरका यह अन्तःपुर मणिपर्वत पर बना था। जलकी सुविधासे सम्पन्न होने के कारण उस स्थानका नाम 'औदका' रक्खा गया था। यह मुर दानवके संरक्षण में था ( सभा० ३८ मैं दाक्षि० पाठ, पृष्ठ ८०५० कालम १ ) । औदुम्बर उदुम्बर या औदुम्बर देशके क्षत्रिय राजकुमार, जो युधिष्ठिरके यहाँ भेंट लेकर आये ते ( सभा० ५२ । १३ )।
औद्दालक-एक मुनिसेवित तीर्थ, जहाँ स्नान करके मनुष्य पापमुक्त हो जाता है (वन० ८४ । १६१ ) । औरसिक-एक देश, जहाँ के योद्धाओं को भगवान् श्रीकृष्णने जीता था ( द्रोण० ११ । १६ ) ।
और्व (ऊर्व ) - एक ऋषि, जो च्यवन मुनिके द्वारा मनुपुत्री आरुषीके गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ये अपनी माताकी जाँघ फाड़कर प्रकट हुए थे ( आदि० ६६ । ४६ ) । इनके पुत्रका नाम ऋचीक था ( आदि० ६६ । ४७ )1 माता की जाँ से इनका प्राकट्य (आदि० १७७ । २४ ) । इनका और्व नाम होनेका कारण ( आदि० १७८ । ८ ) । इनके द्वारा क्षत्रियोंके नेत्रोंकी दृष्टिशक्तिका अपहरण ( आदि० १७७ । २५ ) । अन्धभावको प्राप्त हुए क्षत्रियोंका इनसे नेत्रोंके लिये प्रार्थना और इनका नेत्रदान ( आदि० १७८ । ७ ) । सम्पूर्ण लोकोंके विनाशके लिये इनका संकल्प और प्रयत्न ( आदि० १७८ । ९-१० ) । पितरोंद्वारा इनके जगद्विनाशक संकल्पका निवारण ( आदि० १७८ । १४ – २२ ) । इनके द्वारा अपनी क्रोधाग्निका बडवानलरूप से समुद्र में
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कंस
त्याग ( आदि० १७९ । २१ ) । इनके द्वारा तालजङ्घवंश विनाशकी चर्चा ( अनु० १५३ | ११ ) | औशनस - एक सरस्वती तटवर्ती तीर्थ, जहाँ ब्रह्मा आदि देवता और तपस्वी मुनि रहते हैं (वन० ८३ । १३५ ) । इसका कपालमोचन नाम पड़नेका कारण और माहात्म्य ( शल्य० ३९ । ९ - २२ ) ।
औशिज - ( १ ) एक प्राचीन राजा, जो देवराज इन्द्रके समान पराक्रमी थे ( आदि० १ । २२६) । ( २ ) एक प्राचीन धर्मश मुनि, जो युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा० ४ । १७ ) । ये अङ्गिराके पुत्र हैं ( शान्ति ० २०८ । २७ ) ।
औशीनरि ( औशीनर ) - उशीनरकुमार शिवि, जो यम
राजकी सभामें बैठनेवाले नरेश हैं ( सभा० ८ ११४ ) । औशीनरी - उशीनर देशकी एक शूद्रजातीय कन्या, जिसके
गर्भसे गौतमने काक्षीवान् आदि पुत्रोंको उत्पन्न किया ( सभा० २१ । ५ ) ।
औष्णीक -एक प्राचीन देश, जहाँके राजा भेंट लेकर के यहाँ आये थे ( सभा० ५१ । १७ ) । ( क )
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कंस - ( १ ) मथुरा महाराज उग्रसेनका पुत्र ( सभा० २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ )। इसके रूपमें कालनेमि दानव ही उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । ६७ ) । जरासंघकी पुत्री उसकी पत्नी थी, जो इसे राजा बना देने की शर्त के साथ मिली थी । मन्त्रियोंद्वारा इसका राज्याभिषेक और इसका अपने पिताको कैद करके स्वयं राज्य भोगना । इसके द्वारा देवकीजीका वसुदेवजीके साथ विवाह । आकाशमें देवदूतकी वाणी सुनकर इसका देवकीको मार डालने के लिये उद्यत होना । इसके द्वारा देवकीके छः शिशुओंका वध ' सभा० २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ७३१ ) | कंसका वसुदेवपर कड़ा पहरा | इसके द्वारा वसुदेवकी लायी हुई गोपकन्याको मारने का प्रयत्न | इसके द्वारा व्रजके गोपोंका सताया जाना ( पृष्ठ ७३२ ) । श्रीकृष्ण-बलभद्रद्वारा सुनामा और मुष्टिकके मारे जानेपर कंसके मनमें भयका आवेश तथा श्रीकृष्णद्वारा कंसका वध ( सभा० ३८, पृष्ठ ८०१, कालम २ ) । कंस अम्नज्ञान और बल-पराक्रममें कार्तवीर्यके समान था । इससे समस्त राजाओंको उद्वेग होता था । उसके पास एक करोड़ पैदल सैनिक थे। आठ लाख रथी और उतने ही हाथी सवार थे । बत्तीस लाख घुड़सवारोंकी सेना थी ( सभा० ३८, पृष्ठ ८०३ ) । सभा में विराजमान कंसका श्रीकृष्णके हाथ से मन्त्रियों और परिवारसहित वध