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गाथा ४६-४६] लब्धिसार
[ ३३ पढमे परिम समये पढमं चरिमं च खंडमसरिस्थं । सेसा सरिसा सब्वे अठुव्वंकादिअंतगया ॥४६॥ चरिमे सव्वे खंडा पुरिमसमभोक्ति अपहार ।। असरिसखंडाणोली प्रधापवतम्हि करणम्हि ॥४७|| पढमे करणे अवरा णिवग्गणसमय मेत्तगा तत्तो । महिदिणा वरमवरं तो वरपंती अणंतगुणिदकमा ॥४॥ पढमे करणे पढमा उलगसेढीय चरिमसमयस्स । तिरियगखंडाणोली असरिस्थाणंतरिणदकमा ॥४६॥
अर्थ-आदिकरण (अधःप्रवृत्त करण) के कालमें प्रतिसमय अधिकक्रम लिए हुए असंख्यातलोकप्रमाण परिणाम होते हैं। विशेष (चय) को प्राप्त करनेके लिए अन्तमुहूर्तप्रमाण प्रतिभाग है । उस अधःप्रवृत्तकरणकालके (समयोंके) संख्यातवेंभागप्रमाण अनुकृष्टिरचनाका आयाम है और जितना वह आयाम है उतने समयोंका एकनिर्वर्गणाकाण्डक होता है । निर्वर्गगाकाण्डकके समान प्रतिसमयके परिणामोंके क्रमशः खण्ड होते हैं, वे खण्ड अधिकक्रमवाले होते हैं । यहां विशेषको प्राप्त करनेका प्रतिभाग अन्तमुहूर्तप्रमाण है । प्रत्येकखण्डमें असंख्यातलोकप्रमारग परिणाम हैं। प्रत्येकखण्डमें षट्स्थानपतितवृद्धि असंख्यातलोकबार होती है। एक-एक विशेष ( चय ) में भी षट्स्थानपतितवृद्धि असंख्यातलोकबार होती है । प्रथमसमयका. प्रथमखण्ड और चरमसमयका अन्तिमखण्ड ये विसदृश और शेषखण्ड सदृश हैं । सर्वखण्डोंका आदि 'अष्टांक' है और अन्त 'उवाक' है। चरमसमयके सर्वखण्ड और प्रथमसमयसे लेकर द्विचरमसमयपर्यन्तका सर्वप्रथमखण्ड ; यह अधःप्रवृत्तकरणमें असदृशखण्डोंकी पंक्ति है । प्रथम ( अधःप्रवृत्त ) करणमें निर्वर्गणाकाण्डकप्रमाण समयोंमें प्रत्येकसमयके प्रथमखण्डके जघन्यपरिणाम ऊपर-ऊपर अनन्तगुणे क्रमसे हैं । निवर्गणाकाण्डकके चरमसमयसम्बन्धी जघन्यपरिणामसे प्रथमसमयका उत्कृष्टपरिणाम अनन्तगुणा है, उससे द्वितीय निर्वर्गगणाकाण्डकके प्रथमसमयके प्रथमखण्डका जघन्यपरिणाम अनन्तगुग्गा है इसप्रकार जघन्यसे. उत्कृष्ट और उससे जघन्य सर्पकी चालवत' अनन्तगुणेक्रमसे हैं। प्रथम (अधःप्रवृत्त), १. क. पा. सुत्त पृ. ६२६ ॥