Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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दीप्तियाँ संघ में सर्वरूपेण उज्ज्वलता भरने में संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, राजस्थानी आदि समर्थ होती हैं। संघ आपसे एवं आप संघ से भाषाओं का समीचीन अध्ययन किया है। आपकी गौरवान्वित हैं।
प्रवचन शैली, साहित्यिक, आगमिक भावधारा से ___आपकी दर्शन और चिन्तन की गहराई बहुत अनुगंजित तथा श्रद्धालु भक्तजनों को अनुरंजित करने || विलक्षण है । ईर्ष्या, दंभ, कपट से शून्य आपके वाली है। आपका प्रभावशाली व्यक्तित्व संघ में - निश्छल व्यवहार से हर कोई सहज ही आपकी ओर एकता, सहनशीलता, करुणा का प्रेरणात्मक नाद आकर्षित होता है। आपकी तुलना गुरु गंभीर गुंजाता है। श्रमण संघ की प्रतिभाशाली महासागर से की जा सकती है।
साध्वी अपने संयमी जीवन के पचास वर्ष पूर्ण कर का ___महासती श्री कुसुमवतीजी कुसुम से सुकोमल चुकी है । एतदर्थ मैं आपके संयममय जोवन का भावनाओं से युक्त हैं पर संयमसाधना में दृढ़ता अभिनन्दन करता हूँ, तथा वर्तमान में जिस तरह लिये हुए हैं, पर यह दृढ़ता किसी भी तरह से हठ- आप जनजीवन को जाग्रत कर रही हैं, तथावत् ।
है। दृढता के साथ ही आप में स्थित भविष्य में भी श्रमण संघ की उत्तरोत्तर प्रभावोसमर्पण भाव आपको सहज बनाता है। सहजता के त्पादक ख्याति बढ़ाती रहें तथा प्रस्तुत अभिनन्दन कारण आप अनेकों की प्रेरणा स्रोत हैं । अस्तु ग्रन्थ जिन धर्मदर्शन की विधाओं से अनुरंजित होकर पा
महासती रत्न श्री कुसुमवतीजी के पचास वर्ष जन-जन का मार्ग दर्शक बने, इसी शुभ कामनाओं KC की सुदीर्घ संयम साधना की गरिमापूर्ण सम्पन्नता के साथ । पर हार्दिक अभिनन्दन के साथ उनके सुदीर्घ जीवन की मंगल कामनाएँ अर्पित करता हूँ।
निर्विवाद व्यक्तित्व पर दो शब्द
-सौभाग्य मुनिजी कुमुद
(श्रमणसंधीय महामन्त्री) साध्वीरत्ना का साधनामय जीवन विश्व में निश्चय ही कुछ जीवन ऐसे विलक्षण
- होते हैं, जिनसे हम प्रथमदृष्ट्या --प्रवर्तक रमेश मुनि
प्रभावित नहीं 3- होते, किन्तु जैसे-जैसे उनसे सम्पर्क बढ़ता है वैसे-वैसे | ६) तेजोमय साधना के पचास वर्ष सम्पन्न कर महा- हम न केवल उनसे अधिकाधिक प्रभावित होते हैं, सती श्री कुसुमवती जी ने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व अपितु उन्हें हम अपने स्मृति कोष में सदा के लिए को निखारा हैं। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. स्थापित कर लेते हैं । की आज्ञानुवर्तिनी एवं श्रमण संघ की प्रवर्तिनी श्री प्रज्ञा एवं वक्तृत्व कला की प्रतिमूर्ति महासती | सोहनकुंवरजी म० की सुशिष्या श्री कुसुमवती जी श्री कुसुमवतीजी म० को मैं ऐसे ही व्यक्तित्व एक परम विदुषी साध्वी हैं। जिस प्रकार चन्दन की कोटि में लेता हूँ। कह नहीं सकता कि सभी को वृक्ष के समीप जाने से सुगन्धि प्राप्त होती है उसी मेरे जैसा ही अनुभव होता होगा, किन्तु जहाँ तक प्रकार आपके सान्निध्य में रहने वाले को भी परम मेरा प्रश्न है मैंने उन्हें उन विलक्षण व्यक्तित्वों में से आत्मशांति का अनुभव होता है। भूले-भटके राहियों एक पाया, जो प्रथमदृष्ट्या अति साधारण होकर , को आपसे सही मार्गदर्शन प्राप्त होता है। आपका भी अपने आप में अति असाधारण है। साधनामय जीवन अगाध आगम ज्ञान,ज्ञान,दर्शन एवं वयोवृद्धा विश्र त महासतीजी श्री सोहनकुवर चारित्र की त्रिवेणी से प्रभावित, आप्लावित होकर जी म० ने अपने जीवन में अनेक सुसंस्कृत विदुषो । अध्यात्मयोगिनी के रूप में उभरा है । आपने प्राकृत, साध्वीरत्नों की संरचना की और माँ जिनशासन ५
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
5 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
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