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आपकी बोलीमें आकर्षण है । बहुत दूरसे ही आप समझ जावेंगे कि कौन बोल रहा है । अभी आप मदनगंज, किशनगढ़ पंच कल्याणक महोत्सवमें आये थे। उस समय विद्वत परिषदकी कार्यकारिणीका अधि
भी था। आपने जिस ढंगसे अधिवेशनका संचालन किया तथा पंचकल्याणक महोत्सव में विद्वानोंका नेतृत्व किया, वह उल्लेखनीय है । मदनगंजके पश्चात् आप श्रुतपंचमीके अवसरपर जयपुर पधारे और यहाँ सभामें सिद्धान्त एवं अध्यात्म ग्रन्थोंके भेदको समझाया । उससे जयपुर जैनसमाज आपकी विद्वत्तासे अत्यधिक प्रभावित हुआ।
आप देश एवं समाजके गौरव हैं। आप शतायु होकर जैनसाहित्य एवं समाजका दिशा निर्देशन करत रहें, यही हमारी हार्दिक अभिलाषा है ।
जिनवाणीके एन्साइक्लोपीडिया
डा. महेन्द्रसागर प्रचंडिया, डी.लिट्, अलीगढ़, (उ० प्र०) बात आजकलकी नहीं, करीब पन्द्रह वर्ष पुरानी है । काशीपुर (नैनीताल) में त्रिदिवसीय महोत्सव था। बाहरसे आगत विद्वानों और मनीषियोंमें राजनेता श्रीमान बाबू रतनलालजी जैन, मध्यप्रदेशके राजनेता श्रीश्यामलालजी पांडवी, पण्डितप्रवर श्रीमान् कैलाशचन्द्रजी जैन शास्त्री, डॉ० कुन्दनलाल जैन, संगीतज्ञ श्री ताराचन्द्र जी प्रेमी तथा गुणी गन्धर्व श्रीमाणिकजी पधारे थे। अलीगढ़से अहिंसा सम्मेलनके लिए मुझे भी आमंत्रित किया गया था। आयोजनके प्राण थे-बाबू उग्रसेनजी जैन । पण्डितजीके साथ एक ह' मंचपर बोलनेका कदाचित् यह मेरा पहला ही प्रसंग था ।
जब आगत विद्वान् बोल लिये, उसके बाद प्रेमीजीका गीत गान हुआ। मा० उग्रसेनजी द्वारा मेरा परिचय दिया गया और णमोकार मंत्रके उपरान्त मेरा वक्तव्य बैठकर हआ। एक घण्टे बोलनेके बाद मेरी पीठको थपथपाया गया और मेरे वक्तव्यकी अनुशंसा की गई। मालूम है मेरी पीठ थपथपानेवाला कौन था ? वे थे आदरणीय पण्डितप्रवर कैलाशचन्द्रजी शास्त्री। इतना नहीं, उन्होंने स्वस-पादित मथुराके जैनसन्देशमें मेरे व्याख्यानकी खूब प्रशंसा कर डाली । मुझे लगा कि मानो पण्डितजी द्वारा मेरे लिये यह प्रमाणपत्र है। अब तो मुझे समाज द्वारा खूब बुलाया जाने लगा। सायंकालीन भोजनके उपरान्त मुझसे पण्डितजीने वार्तालाप भी किया और मुझे लगा कि दर्शन, साहित्य और संस्कृतिके विषयमें स्पष्ट दृष्टिकोण समाजमें वस्तुतः विरल ही है। तभीसे मेरे मनमें पण्डितजीके प्रति श्रद्धा-भावना उग आई।
महावीर जयन्तीके अवसरपर दूसरी बार बिजनौरमें मुझे पण्डितजीके साथ बोलनेका सुअवसर मिला था। कालिज प्रांगण में आयोजित विशाल सभाको सम्बोधित करनेके उपरान्त जब पण्डितजीसे वार्ता हुई, तो मुझे खूब स्मरण है कि उन्होंने कहा था कि आप रजनीशकी भाँति खूब बोलते हैं। मेरा आशीर्वाद है । आप जैसे नवयुवकों द्वारा अब जैनधर्मको प्रभावना होगी। यह मेरे लिये पण्डितजीका दूसरा स्वस्तिपरक प्रमाणपत्र था। इन भेटोंमें मुझे जो लगा, उससे स्पष्ट है कि जो स्थान हिन्दी साहित्यमें आचार्य प्रवर श्री महावीरप्रसाद द्विवेदीका है, वही स्थान जैन-समाज में पण्डित प्रवरका है। पण्डितजी ज्ञानके पक्के पारखी और सिद्धान्तके सुदृढ़ सुमेरु हैं । दिशा दर्शन तथा प्रेरणा प्रणाली कोई उनसे सीखे ।
अखिल विश्व जैन मिशनके आद्य संचालक बाबू कामताप्रसादजी जैनके सौजन्यसे मुझे पण्डितजी कृत अनेक ग्रन्थोंके पारायणका सुअवसर प्राप्त हुआ है । लेखनमें पण्डितजीका दृष्टिकोण स्पष्ट और सर्वथा मौलिक परिलक्षित होता है। वे समयानुसार धर्म और सिद्धान्तके प्रतिपादनमें आस्था रखते हैं। उदारता
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