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नारद ने बीच में आकर प्रद्य म्ग का परिचय दिया 1 इससे सवको बड़ी प्रसत्रता हुई और प्रय म्न का खूब स्वागत हुना तथा नगर में उत्सव मनाया गया । प्रय म्न ने वर्षों राजमुख भोगा तथा अन्त में दीक्षा लेकर निर्वाण प्राप्त किया 1 महाकवि सिंह की अपभ्रश मात्रा में पज्जुष्णा कहा तथा कवि सचारु कृत हिन्दी में प्रद्युम्न चरित दोनों ही सुन्दर काव्य हैं ।
इस प्रकार रोमाञ्चक कथा काव्य लिखने की परम्परा जैनाचार्यों एवं विद्वानों में बहुत प्राचीन काल से रही है । इनके सहारे पाठक असद्गुण को छोड़कर सद्गुणी की अोर प्रवृत्त होता है । इन रोचाञ्चक जीवन कथानों में बहुत सी घटनाएं समान रूप से मिलती है जिनका कुछ वर्णन निम्न प्रकार है - (1) करमाक था ना में पुरुषों, मटियों तथा राजकुमारों का जीवन परिणत होता है । ये महापुरुष अपनी अलौकिक प्रतिभा के कारण किसी भी बड़ी से बड़ी बिपत्ति का साग्ना करने में समर्थ होने हैं। इन कथाओं में धार्मिकता एवं लौविकाता का मेल कराया गया है । प्रत्येक नायक अन्त में साघु जोवन धारण करता है और मर कर स्वर्ग अथवा निर्वाण प्राप्त करता है। प्रद्युम्न, जिनदत्त, करकण्ड मर कर निर्वाण प्राप्त करते हैं, जबकि भविष्यदत्त, नागकुमार पर स्वर्ग जाते हैं। इस प्रकार कथायें शान्त रस मे पर्यनसान्त हैं।
(२) सभी रोमाञ्चक कथानों में प्रेम, विरह, मिलन का खूब वर्गान मिलता है। इससे जैन कवियों के प्रेमाश्यानक काय लिखने के प्रति प्रौत्सुक्य प्रकट होता है । जिनदत्त, भथिप्यदत्त, श्रीपाल, नागकुमार के जीवन में कितनी ही घटनायें घटती हैं, उनका कभी किसी पत्नी से मिलन होता है तो कभी किसीसे विरह । यास्तव में इस प्रकार की जीवन-कथानों को १५वीं शताब्दी तक खूब महत्व दिया गया और इस तरह अनेकों कथा-ग्रयों का निमांगा हुना। (३) में काव्य युद्ध-वर्णन से भरे पड़े हैं । प्रद्युम्न के जीवन का अधिकांश भाग युद्ध में व्यतीत होता है । कभी-कभी नायक अपनी विद्यायों से युद्ध लडते
इक्कीस