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जयन्त
[अंक गदा-मालूम होता है, वे ही लोग आ रहे हैं। ठहरो, ठहरो, तुम लोग कौन हो ?
(विशालाक्ष और वीरसेनका प्रवेश) विशालाक्ष-देशके हितैषीवीरसेन और राजाकी प्रजा। गदा०-रामराम भाई रामराम ।
वीर०-ऐ ईमान्दार सिपाही, ईश्वर तुम्हारा भला करे । अब पहरेपर कौन है ?
गदा.-मेरी जगह भीमसेन है । अच्छा रामराम । (जाता है) वीर०-भीमसेन, भीमसेन ! भीम-कौन, विशालाक्ष ? विशा.-शायद, वही है।
भीम-विशालाक्ष, आ गए ! वीरसेन, तुम भी आ गए ! बहुत अच्छा हुआ।
वीर०-क्यौं जी, आज रातको वह फिर दिखाई पड़ा था ? भीम०-मैंने तो कुछ भी नहीं देखा।
वीर०-विशालाक्षका कहना है कि वह असलमें कुछ भी नहीं-निरा भूम है । मैंने तो उस डरावनी सूरतको दो बार देखा; पर इसे विश्वास ही नहीं होता । इसीलिये आज इसे मैं अपने साथ ले आया हूं; जिसमें आजरातकी घटना यह अपनी आँखो देखे,
और अगर वह सूरत फिर दिखाई पड़ी तो हमारी बातोंमें विश्वास कर उस सूरतसे दो दो बातें भी करले ।
विशाल-अजी जाओ, वह नहीं दिखाई देती।
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