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जयन्त
[ अंक २ ऐतिहासिक सृष्टिसम्बन्धी, शोकान्त ऐतिहासिक, योगान्त-वियोगान्त ऐतिहासिक-सृष्टिसम्बन्धी, अविभक्त प्रवेश अथवा अखण्ड कवितातात्पर्य, नाटककी जितनी बातें हैं उन सबमें यह पटु है; सामना हो जानेपर किसीसे हार जाने वाली नहीं । कालिदासकी मृदुता तथा भवभूतिका मधुर काठिण्य दोनोंका चित्र ये लोग खींच सकते हैं ।
जयन्त-क्यौँ महाशय ? उस बुड्ढे कण्वके पास एक कैसी अनमोल वस्तु थी ?
धू-वह कौनसी, महाराज ?
जयन्त-आप नहीं जानते ? उसके एक सुन्दर रूपवती कन्या थी, जिसपर उसका बड़ा प्रेम था ।
धू०-(एक ओर ) अभीतक कमलाको यह भूला नहीं । जयन्त-कहिये, कण्वमुनीजी ! मैं सच कहता हूँ या झूठ ?
धू०-महाराज ! मेरे एक लड़की है ; इसी लिये आप मुझे वृद्ध कुण्वमुनी कहते हैं । मेरे लड़की ज़रूर है ; इस लिये मुझे यह बात स्वीकार करनी ही पड़ेगी।
जयन्त-नहीं, इसकी क्या ज़रूरत है ? धू०-तब किसकी ज़रूरत है ?
जयन्त-बात यह है; कर्मकी रेखा कोई मिटा नहीं सकता। जो भाग्यमें बदा होगा वही होगा । उसमें हमारा आपका बस नहीं चल सकता । होनहार कोई रोक नहीं सकता । खैर, ये कोन हैं ?
(चार पाँच नट प्रवेश करते हैं ।) आइये, आइये । आप लोग आगए; बहुत अच्छा हुआ । आप लोगोंको देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। ऐ मेरे प्यारे मित्र ! पिछली बार
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