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जयन्त
[मंक३ से हमारा साहस टूट जाता है; और यह विचार होता है कि जो कुछ दुःख हम यहां भुगत रहे हैं वे ही अच्छे; पर जिस जगहके बारमें हम बिलकुल अन्धे हैं उस जगह जाना नहीं अच्छा; क्योंकि वहां न जाने
और कैसे कैसे दुःख उठाने पड़ेंगे । इन्हीं विचारोंसे हमारी हिम्मत टूट जाती है और हम डरपोक बन जाते हैं। ‘करें या न करें' ऐसे विचारोंसे हमारा संकल्प ढीला पड़ जाता है; और साहसके बड़े बड़े काम करनेके विचारोंका प्रवाह पीछे फिर जाता है । काम करना तो अलग रहा-हम उसकी यादतक भूल जाते हैं। पर ठहरो; यह कौन ? विमला कमला ! हे देवी! तेरे स्तवनसे मेरे सारे पाप जलकर भस्म हो जाय ।
कमला-महाराज ! इन दिनों आपकी तबियत कैसी है !
जयन्त-अहा ! आप हैं ! धन्य है मेरा भाग्य ! क्या भाप मेरी तबियतका हाल जानना चाहती हैं ? मेरी तबियत बहुत अच्छी है, बहुत खासी और बहुत दुरुस्त है।
कमला-महाराज ! आपने अपने प्रेमका स्मरण-चिन्ह कहकर जो चीजें मुझे दी थीं उन्हें मैं बहुत दिनोंसे लौटा देना चाहती हूँ। आज अच्छा अवसर है; तो आपसे मेरी यही विनती है कि कृपाकरके अपनी चीजें आप लौटा लें। '
जयन्त--नहीं, नहीं, मैंने तो आपको कभी कुछ भी नहीं दिया।
कमला-अगर आप अच्छी तरह याद करें तो याद आ नायगा. कि ये सब चीजें आपने ही मुझे दी थीं। और देते समय मापने जो मीठी मीठी बातें की थीं उनसे तो इनका मूल्य और भी बढ़ गया था
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