Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org १७२ [ क विशा० - - महाराज ! क्या अब भी मैं जीवित रहूँगा ! विश्वास रखिये, मैं बदनामीसे मौत अच्छी समझता हूँ। देखिये, अभी, थोड़ासा जहर बचा है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त---. जयन्त - विशालाक्ष ! अगर तुम मर्द हो तो वह प्याला मुझे दे दो। मैं पीऊँगा । मेरे प्यारे मित्र विशालाक्ष ! अगर इस दुर्घटनाका सच्चा कारण लोगोंको न मालूम होगा तो मेरे पीछे मेरा नाम कितना बदनाम होगा ! अगर तुम हृदयसे मुझे अपना मित्र मानते हो तो स्वर्ग सुख पानेके लिये इतने अधीर न बनो; जरा ठहरो, मेरी कथा लोगों को सुनानेके लिये इस दुःखमय संसारमें अपने कष्टमय जीवन के कुछ दिन और बिताओ। ( दूरीपर फ़ौजके चलनेकी और बन्दूकोंकी भावाज सुनाई पड़ती है ) यह लड़ाई जैसा शोरगुल कैसा ? हारी० - महाराज ! पोलोमपर चढ़ाई करके आये हुए युधाजित श्वेतद्वीपके वकीलोंको तोपोंकी सलामी दे रहे हैं जयन्त - विशालाक्ष ! अब मरता हूँ । इस जबरदस्त जहरसे मेरी तबियत बहुत घबरा रही है । श्वेतद्वीपकी खबर सुनने के लिये मैं अब जिन्दा नहीं रह सकता । पर यह भविष्य तुम्हें कह देता हूँ कि लोग युभाजितको यहाँका राजा चुनेंगे; अच्छी बात है, मेरी भी यही राय है । इस दुर्घटना के विषय में सारी बातें उससे कह दो । अच्छा, मेरे अपराधोंकी क्षमा करना, अब बिदा होता हूँ । ( मरता है । ) विशा०- ( आँखों में आँसू लाकर ) आह! गया ! गया ! संखारसे एक उदार पुरुष आज उठ गया ! प्यारे मित्र, मेरे राजकुमार अपने मित्रको छोड़कर तुम अकेले ही चल बसे ! अस्तु, खुशी तुम्हारी; For Private And Personal Use Only

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