Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २.] बलभद्रदेशका राजकुमार । १७१ ऊपर उलट पड़ी | देखो, यहाँ मैं भी लेटा -- अब नहीं उठ सकता | तुम्हारी माको जहर पिलाया है । बस, अब मुझसे नहीं बोला जाता । यह सारी राजाकी करतूत ! जयन्त- - क्या इसकी नोक में भी ज़हर लगा है ? अच्छा तो, ज़हर ! इसे भी तू अपना प्रताप दिखा दे। ( राजाके पेटमें तलवार भोक देता है ) सब लोग - दग़ा ! दग़ा ! ! रा०-- आह ! मित्रो ! मुझे बचाओ; अभी मैं जी सकता हूँ 3 जखम हलका है । जयन्त - रे दगाबाज, खूनी, नीच ! ले, तू भी यह शर्बत पी ले। कैसी अच्छी मित्रता हुई ! जा, माके पीछे २ तू भी चल दे । ( राजा मरता है ) चन्द्र० - उचित दण्ड मिला ! ज़हरका प्याला उसीका तय्यार किया था । सच्चे जयन्त ! मेरा और तुम्हारा अपराध एक ही सा है; इसलिये मुझे क्षमा करो । मेरी और मेरे पिताकी मृत्युके लिये तुम अपराधी नहीं हो, और न ही तुम्हारी मृत्युके लिये अपराधी हूँ ( मरता है ) । जयन्त - - परमात्मा तुझे मुक्ति देगा ! मैं भी तेरे पीछे २ आता | विशालाक्ष ! अब मरता हूँ । अभागिनी रानी ! तुझे अन्तिम प्रणाम करता हूँ । श्रोताओ ! यह विचित्र घटना देख चकित होकर आपके चेहरे पीले पड़गये हैं, पर कोई उपाय नहीं--कठोर मृत्युने मुझे जकड़ लिया है— अब इतना समय नहीं, नहीं तो इसका सारा भेद आप लोगों पर प्रकट कर देता । अस्तु, जो हुआ सो हुआ । विशालाक्ष ! मैं. मरता हूँ; पर तुम अभी जी रहे हो, इसलिये जो लोग इस भयानक घटनाका ठीक ठीक कारण न जानकर मुझे दोष देंगे उन्हें इसका कारण साफ़ २ For Private And Personal Use Only

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