Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 193
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ जयन्त [अंक ५ चालाकियाँ खेली; चालाकियाँ कैसे पकड़ी गई और इसके परिणाम में, जिसकी चालाकी उसीके गळे कैसे पड़ी ! ये सब बातें मैं साफ़ साफ़ कह सकता हूँ। __युधा.---ठोक है, चलिये, ये सब बातें सुन लेनी चाहिये और यहाँके कुछ सजनोंको भी सुनने के लिये बुलालेना चाहिये । मुझे बहुत दुःख है कि ऐसी अवस्थामें मुझपर इस राज्यका शासनमार आ पड़ा; यहाँकी राजगद्दीपर मेरे सिवाय और किसीका अधिकार भी तो नहीं है। विशा--हा, इस विषयमें भी मुझे कुछ कहना होगा । इस विषयमें मेरे मित्रने मुझपर अपनी सम्मति प्रकट की है और मैं समझता हूँ , औरॉकी भी वही सम्मति होगी। पर मैंने जो कुछ कहा है, वह सबसे पहिले हो जाना चाहिये; क्योंकि देर करनेसे कहीं ऐसा न हो कि जिसमें और भी नई खुराफ़ात खड़ी हो जाय। __युधा०-ठीक है ; चार कप्तान मिलकर किसो वीर सैनिककी लाशकी तरह जयन्तकी लाश चौराहेपर ले चलें; क्योंकि अगर वह राजगद्दीपर होता तो अपनेको एक बहुत सुयोग्य राजा कहला लेता । इसलिये युद्ध में काम आये हुए वीरों की तरह इस लाशकी भी बड़ी धूमधामसे बारात निकाली जाय । हाँ, उठाओ यहाँ से ये सब लाशे ; ऐसा दृश्य रणक्षेत्र में ही शोभा देता है-ऐसी जगह वह बहुत ही भद्दा और बुरा मालूम होता है । जाओ, सिपाहियोंसे कहदो कि वे तोपोंकी सलामी दें । ( मुर्देकी बारात निकाली जाती है । लार्योको उठा ले जाते हैं ; और तोपोंकी सलामी होती है)। पाँचवाँ अंक समाप्त । For Private And Personal Use Only

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