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दृश्य २]
बलभद्रदेशका राजकुमार ।
रा०—जरा ठहरो; लाओ जी, शर्बत लाओ । जयन्त, को, इसे fior; थकावट दूर हो जायगी । ( पर्देके अन्दर वार्थो और तोपोंकी आवाज सुनाई देती है) वह प्याला उसे दे दो ।
जयन्त - ज़रा ठहर जाइये, एक हाथ और खेल लेता हूँ। हाँ, आओ ( खेलते हैं ) दूसरा वार; क्यों जी, अब क्या कहते हो ? चन्द्र०—हाँ, छू गया, कबूल करता हूँ ।
रा०-- जान पड़ता है, हमारा जयन्त बाजी मारलेगा |
रानी - उसका दम फूलने लगा । यहाँ आओ, बेटा जयन्त
यह रुमाल लेकर पसीना पोछ डालो । ईश्वर चाहेगा तो तुम ही नीतोगे । अच्छा, मैं यह पी लेती हूँ ।
जयन्त - तुम्हारा आशिर्वाद चाहिये ।
रा० - प्रिये विषये ! तुम मत पीओ ।
रानी - पीती हूँ, महाराज ! क्षमा कीजिये ।
रा०-हाय हाय ! जहरका प्याला ! अब क्या ! मौका निकल गया !
जयन्त--अभी नहीं, मा, मैं थोड़ी देर में पीऊँगा ।
रानी --आओ, मैं तुम्हारे मायेका पसीना पोंछ दूँ । चन्द्र० --- महाराज ! अबकी मैं मारूँगा ।
रा०—- मैं नहीं समझता कि तुम मार सकोगे ।
चन्द्र० - (स्वगत ) इतना होनेपर भी मेरी विवेक बुद्धि इसके अनुकूल नहीं |
जयन्त -- चन्द्रसेन, आओ, लो, अब तीसरा वार । क्यों नी, तुम मन लगाकर क्यों नहीं खेलते ? मालूम होता है, तुम मुझे नवसिखुआ समझ कर मेरी दिल्लगी कर रहे हो ! अच्छा, अबकी बार तुममें जो कुछ सामर्थ्य और इल्म हो सब खर्चकर बालो ।
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