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१५.
जयन्त
[अंक ५ ५० म०--सच बात यह है कि अगर मरनेके पहिले ही मनुष्य सड़ा गला न हो तो वह आठ या नौ वर्ष मजेमें रह सकता है । पर आजकल ऐसे सड़ेगले मुर्दे आते हैं कि जिन्हें गडहेमें रखना ही कठिन हो जाता है । चमार बिना सड़े गले मजेमें नौ वर्षतक जमीनमें रहता है।
जयन्त--क्यों ? उसीमें यह विशेषता क्यों ?
प० म.--उसका चमड़ा उसके पेशेमें इतना कमाया हुआ रहता है कि बहुत दिनोंतक वह पानीको अपने अन्दर घुसने ही नहीं देता। और आप लोगोंका पानी ही आपकी लाशको गला देता है । देखिये, यह खोपड़ी ! इसे ज़मीनके अन्दर बीस और तीन इतने वर्ष हुए ।
नयन्त--यह किसकी खोपड़ी है ? प० म.--था, एक वेश्यापुत्र; उसीकी है। आप किसकी समझते हैं ? जयन्त-मैं जानता ही नहीं;-समझंगा क्या ?
प० म०---नरक में जाय वह पाजी बदमाश ! उसने मेरे सिरपर एक बार शराषका बोतल उड़ेल दिया था । उसीकी यह खोपड़ी है। उसका नाम था घांघा । राजाके यहां वह मसखरेका काम करता था ।
जयन्त-क्या ? यह उसी घोंघा मसखरेकी खोपड़ी है ! प०म०-जी हां, उसीकी है।
अन्दन्त-लाओ, देवू तो सही । ( खोपड़ी हाथमे लेता है।) अभागे बोधा ! ह: ! विशालाक्ष, मैं उसे अच्छी तरह जानता था । वह बड़ा भारी हंसोड़ अर महः ।। भा। मुह क्या बनाता और आँखें माता था ! उसे जो वही हँस पड़ता था । कमसे कम
इशार बार मुझे अपनी पाकर वह लौड़ा होगा ! वे सब वाले उस मगर तो बढ़ी अच्छी होती थी, पर अब उनकी मार
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