Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ जयन्त [अंक ५ मरा, वह गाड़ा गया, उसकी मिट्टी हुई; मिट्टीकी लेई बनी । अब उसी सिकन्दरशाहकी बनी लेईसे बिल बन्द किये गये होंगे । यह बात नहीं हो सकती ? अच्छा, और भी सुनो-- सीज़र जो शाहंशाह था मिट्टीमें वहभी मिलगया । जिसके असीम प्रतापसे संसार सारा हिलगया । मिट्टीके उस पुतलकी मिट्टी सन रही है गारमें । आश्चर्य है इस बातका. वह पुत रही दीवारमें । पर ठहरो, ठहरो देखो, महाराजकी सवारी इधर ही आर ही है। . ( बाजेके साथ कमलाकी लाश लाई जाती है; साथमें पुरोहित, चन्द्रसेन, और उसके कई रिश्तेदार शोक करते हुए प्रवेश करते हैं । पीछे २ राजा रानी और कुछ सेवक भी प्रवेश करते हैं।) ___यह मुर्दा किसका है ? इसके साथ रानी और दरबारी क्यों ? और इसकी अन्तिम क्रियाकी ऐसी अधूरी तैय्यारी क्यों ? मालूम होता है किसीने आत्महत्या की है और उसीकी यह लाश है ! परन्तु यह तो किसी बड़े आदमीका मुर्दा जान पड़ता है ! अस्तु, जो हो, आओ हमलोग छिपकर ज़रा देखें तो सही क्या होता है । (जयन्त और विशालाक्ष एक ओर खड़े रहते हैं।) चन्द्रसेन-अब कौनसी क्रिया बाकी है ? जयन्त-रें! यह तो चन्द्रसेन है। बहुत ही भला आदमी है । भच्छा, देखें, क्या होता है। चन्द्र०-अब क्या बाकी है ? पुरोहित-शास्त्रकी आशानुसार उसकी सारी क्रिया हो चुकी है । वह कैसे मरी, इसका अभीतक ठीक ठीक पता नहीं लगा। For Private And Personal Use Only

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