Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ जयन्त [ अंक ५ (गड़हेमें कूद पड़ता है ) हाँ, अब डालो मिट्टी, मुर्दे और जिन्दे दोनों पर; जबतक कि मिट्टीका एक पहाड़ न खड़ा हो तबतक मिट्टी डालनेमें कसर न करो। जयन्त-(आगे बढ़कर ) तू कौन है जो इतना भयङ्कर दुःख कर रहा है ? तेरे दुःखका भीषण आक्रोश सुन आकाशमार्गसे भ्रमण करने वाले तारे भी आश्चर्य चकित हो एक दम ठहर गये ! देख, यह बलभद्रका राजकुमार जयन्त भी गड़हेमें कूदता है ! (गड़हमें कूद पड़ता है।) चन्द्र०-रे दुष्ट चाण्डाल ! तेरे सात पुश्तको नरकवास हो ! (दोनों झगड़ते हैं) जयन्त-देख, यह तू अच्छा काम नहीं करता। अगर अपना भला चाहे तो मेरा गला छोड़ दे । मुझे एकाएक क्रोध नहीं आता तो भी, यादरख, मैं अपना अपमान कभी न सहूँगा । सीधी राहते भपना हाथ हटाले । रा०-अजी, उन्हें कोई छुड़ाओ । रानी-जयन्त ! जयन्त ! सबलोग-महाशयो !विशा-महाराज ! छोड़ दीजिये, शान्त हो जाइये ! (लोग उन्हें छुड़ाते हैं ; और वे दोनों गड़हेके बाहर निकल माते हैं।) जयन्त-जबतक मेरे दममें दम है तवतक मैं इस बातपर उससे लडूंगा। रानी-बेटा जयन्त ! वह क्या बात है ? जयन्त०-यही कि, मैं कमलाको प्यार करता था । उक्षपर For Private And Personal Use Only

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