Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 182
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य२] बलभद्रदेशका राजकुमार । परतले इत्यादि । सचमुच, महाराज, उनमें तीन परतले तो बहुत ही खूबसूरत बने हैं; मूठोंके बिल्कुल जोड़तोड़के हैं। वाह ! वैसा कब्ज़ा और दस्ता तो बहुत कम देखनेमें भाता है। जयन्त-कब्जा क्या चीज़ होती है ? विशाल-मैंने पहिले ही सोचा था कि बिना टीका-टिप्पणीके इनकी भाषा समझमें आना बहुत कठिन है। हारी०--महाराज ! कब्जा वह चीज़ है जिसमें तलवार लटकाई जाती है । जयन्त-अगर किसी किलेपर कब्जा करते तो 'कब्जा' और भी शोभा देता । खैर; क्या कहा ? एक ओरसे छ: अरबी घोड़े और दूसरी ओर से छ: उत्ताली तलवारें मै. सब सामानके और तीन अनमोल और सुन्दर परतले शर्तमें लगे हैं। अर्थात् यह शर्त उत्ताल और बलभद्रके बीच है । पर, यह शर्त है किस लिये ? हारी-महाराज ! आपके चाचाजीने बारह वारोंकी शर्त रक्खी है; वह आपपर तीनसे अधिक वार नहीं कर सकता । अर्थात् अगर वह बारह वार करेगा तो आप कमसे कम नौ तो अवश्य ही करेंगे। और अगर आपको स्वीकार हो तो खेलकी इसी समय तैय्यारी हो सकती है। जयन्त--अगर मैं 'ना' कह दूँ तो ? हारी--मैं यह पूछता हूँ , महाराज, कि आपको उसके साथ खेलना स्वीकार है या नहीं। __ जयन्त-अजी जनाब ! मैं इसी दीवानखानेमें घूमता रहूँगा। अगर महाराजकी इच्छा हो तो यह मेरा फुरसतका समय है, हथियार भेज दें । और अगर चन्द्रसेन राजी हो, और महाराज उचित समझें तो For Private And Personal Use Only

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