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जयन्त
[ अंक
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जयन्त---नहीं नहीं, मैं शकुन और अपशकुनकी बिल्कुल पर्वाह नहीं करता । जो तकदीर में है वह अवश्य ही होगा । जो कुछ होनेवाला है वह अगर अभी हो जाय तो आगेके लिये हम निश्चिन्त बने रहेंगे; अगर आगे न होनेवाला हो तो वह अभी हो जायगा, और अमर अभी न हो तो आज नहीं कल कभी न कभी वह अवश्य ही होगा ; इसलिये हमें हर दम तैय्यार रहना चाहिये । मरनेपर अगर हम सब बातें और सब चीजें यहीं छोड़ जाते हैं तो जीवित रहते हुए उन्हें छोड़ने में दुःख क्यौं ?
( राजा, रानी, चन्द्रसेन, हारीत, सरदार और नौकर हथियार लेकर प्रवेश० ।)
रा०
-जयन्त ! इधर आओ, और इस हाथसे हाथ मिलाओ । ( राजा चन्द्रसेनका हाथ जयन्तके हाथमें देता है । ) जयन्त-भाई ! मैं तुमसे क्षमा मांगता हूँ । मैंने तुम्हारा अपइसलिये तुम मुझे अवश्य और तुमने भी सुना होगा
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।
मेरी बातों से अगर तुम्हारा
राध किया है, पर तुम उदार पुरुष हो, ही क्षमा करोगे । ये सब लोग जानते हैं I कि मेरा दिमाग़ बेतरह बिगड़ गया है अपमान हुआ हो तो उसके लिये मैं दोषी नहीं हूँ- पागलपन दोष है । क्या जयन्तने चन्द्रसेनका अपमान किया ? नहीं, जयन्तने नहीं किया । जयन्त अपने आपमें नहीं, ऐसी अवस्था में अगर वह चन्द्रसेनका अपमान करे तो उसके लिये जयन्त अपराधी नहीं हो सकता और न वह उस अपराधको स्वीकार ही करता है । फिर, वह अपमान किसने किया ? उसके पागलपनने । अगर ऐसी बात है तो जिसका अपमान हुआ उसीके साथ २ जयन्तका भी अपमान हो चुका ; और जयन्तका
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