SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org १६६ जयन्त [ अंक : जयन्त---नहीं नहीं, मैं शकुन और अपशकुनकी बिल्कुल पर्वाह नहीं करता । जो तकदीर में है वह अवश्य ही होगा । जो कुछ होनेवाला है वह अगर अभी हो जाय तो आगेके लिये हम निश्चिन्त बने रहेंगे; अगर आगे न होनेवाला हो तो वह अभी हो जायगा, और अमर अभी न हो तो आज नहीं कल कभी न कभी वह अवश्य ही होगा ; इसलिये हमें हर दम तैय्यार रहना चाहिये । मरनेपर अगर हम सब बातें और सब चीजें यहीं छोड़ जाते हैं तो जीवित रहते हुए उन्हें छोड़ने में दुःख क्यौं ? ( राजा, रानी, चन्द्रसेन, हारीत, सरदार और नौकर हथियार लेकर प्रवेश० ।) रा० -जयन्त ! इधर आओ, और इस हाथसे हाथ मिलाओ । ( राजा चन्द्रसेनका हाथ जयन्तके हाथमें देता है । ) जयन्त-भाई ! मैं तुमसे क्षमा मांगता हूँ । मैंने तुम्हारा अपइसलिये तुम मुझे अवश्य और तुमने भी सुना होगा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir overgange । मेरी बातों से अगर तुम्हारा राध किया है, पर तुम उदार पुरुष हो, ही क्षमा करोगे । ये सब लोग जानते हैं I कि मेरा दिमाग़ बेतरह बिगड़ गया है अपमान हुआ हो तो उसके लिये मैं दोषी नहीं हूँ- पागलपन दोष है । क्या जयन्तने चन्द्रसेनका अपमान किया ? नहीं, जयन्तने नहीं किया । जयन्त अपने आपमें नहीं, ऐसी अवस्था में अगर वह चन्द्रसेनका अपमान करे तो उसके लिये जयन्त अपराधी नहीं हो सकता और न वह उस अपराधको स्वीकार ही करता है । फिर, वह अपमान किसने किया ? उसके पागलपनने । अगर ऐसी बात है तो जिसका अपमान हुआ उसीके साथ २ जयन्तका भी अपमान हो चुका ; और जयन्तका For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy