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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य] बलभद्रदेशका राजकुमार। में मिलकर उस विषयमें स्वयं बातचीत कर लेंगे । उन्होंने फिर मुझे भेजकर आपसे यह पुछवाया है कि आप चन्द्रसेनसे पटा खेलमा चाहते हैं या नहीं, या कुछ दिन अभ्यास करके फिर खेलेंगे। ___ जयन्त-मैं अपने विचारोंको सदा आँखों के सामने रखता हूँ। और मेरे विचार राजाकी इच्छापर निर्भर करते हैं। अभी या और कभीअगर मैं ऐसा ही रहा जैसा कि इस समय हूँ तो हर समय मैं खेलनेके लेये तैय्यार है। .. सरदार-महाराज, रानीसाहब और सबलोग इघरी भाग हैं। अयन्त-अच्छी बात है। यह समय भी कुछ बुरा नहीं है। सर-रानीसाहबकी इच्छा है कि खेलनेके पहिले आप चन्द्रसेनसे दो मीठी बातें कर लें। जयन्त-अच्छी बात है। ( सरदार जाता है।) विशा-महाराज ! इस खेलमें आप हार जायेंगे । जयन्त-मैं नहीं समझता कि मैं हार नाऊँगा । जयते वह उत्सालमें गया है तबसे मेरा अभ्यास जारी है। इसलिये मुझे विश्वास है कि मैं जीत जाऊँगा । पर मेरे हृदयकी स्या अवस्था है उसे तुम सोच भी नहीं सकते; पर जाने दो, इन बातोमें क्या रखा है। ... विशा-नहीं, महारान जयन्त-अजी, यह निरी मूर्खता है; इन सब बातोसे चाहे चियाँ र जाय-हम लोग नहीं डरते। विशा.-अगर आपका मन किसी बातसे हिचकता हो तो उसे कभी मत करिये । मैं अभी जाकर उन्हें यहाँ आनेसे रोक देता हूँ, और कह आता हूँ कि आपकी तबियत इस वक्त अच्छी नहीं है। For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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