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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त उनकी बात रखनेकी मैं अपने भस्सक चेष्टा करूँगा ।अमर जीत मया तो.ठीक हो है और अगर हार भी गया तो उसमें कोई बड़ी भारी हानि नहीं है-बहुत हुआ तो थोडासा लक्षित होना पड़ेगा और कुछ चोट आ जायगी। हारी-फिर महाराजसे यही बात जाकर कह हूँ ! जयन्त-हाँ, यही बात कह दीजिये ; पर, बिना बात बनाये भाप थोड़े ही मानेंगे ? हारी०-अच्छा तो मैं आपकी सेवामें तत्पर होता हूँ। जयन्त.मेरी क्यों, आप अपनी ही सेवा कीजिये। (हारीत जाताहै)। (विशालाक्षसे.) ऐसे लोग अगर अपनी प्रशंसा आप न सुनायें तो इनें कौन पूछे ? विशा.--अब यह सीपके कीड़े की तरह चला लपक कर राजा के पास । उनसे जाकर ऐसी बातें सीटेमा कि उनकी तबीयत मान जाय । ___ जयन्त-रूखदेखे व्यापारमें ये लोग बड़े पके होते हैं-माके स्तनसे इन्हें चाफ्ल्सीकी तालीम मिलती है। आजकल इन्हींका बोलबाला है; क्योंकि मौका देखकर इशारेपर नाचना ही इनका काम है। और इनकी पण्डिताईकी यह तारीफ है कि ये लोग बड़े लोगोंसे दो चार बातें सुनकर उन्हीं बातोंको फिर अपने यार दोस्तोंमें इस तरह बनाकर कहते हैं मानों इन्हींके मस्तिष्कसे वे बातें निकली हैं। ऐसे ही लोगोंकी आजकल बनती है। (एक सरदार प्रवेश करता है) सरदार-महाराज ! आपके चाचाजीने हारीतको आपके पास भेजा या; उसने जाकर उनसे यह कहा कि आप उनसे दीवानखाने. For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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