Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 181
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त [अंक जयन्त-आपका उद्देश्य क्या है, महासय १ इस समय उसकी इतनी प्रशंसा करनेका असल कारण तो बतलाइये ! हारी-महाराज ? विशा०-क्या आप सीधे और सरल शब्दोंमें कोई बात नहीं कह सकते ? मुझे विश्वास है कि अगर आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं। बयन्त-उसकी इतनी प्रशंसा करनेमें आपका उद्देश्य क्या है ? हारी-चन्द्रसेनकी ? विशा-महाराज ! मालूम होता है कि इनके कोषका भव देवाला निकल गया; शब्दोंकी पूँजी खतम हो गई । जयन्त-हाँ, उसीकी । हारी०- मैं जानता हूँ , महाराज अनजान नहीं हैं। जयन्त-यह आप जानते होते तो अच्छा होता; पर तब बातोंमें यह रंग न आता । खैर, कहिये, क्या कहते हैं । हारी०--चन्द्रसेनके गुणों के विषयमें आप अनजान नहीं हैं। जयन्त--यह बात तो मैं नहीं कह सकता; क्योंकि किसी दूसरे मनुष्यको ठीक २ जाननेके लिये पहिले अपने आपको पहिचानना पड़ता है। हारी-मैं उसके शस्त्रकौशलकी बात कह रहा हूँ। लोगोंके ख्यालसे इस विषयमें उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। जयन्त--किस शस्त्रके कौशलकी बात कहते हैं ? हारी०-तलवार और कटार। जयन्त अर्थात् इन्हीं दो शस्त्रों में वह निपुण है । अच्छा, फिर ? हारी०-महाराजने : अरयो घोड़े शर्तमें लगाये हैं; और चन्द्रसेनने अपनी ओरसे छ: उत्ताली तलवारें और कटारें मै कमरबन्द, For Private And Personal Use Only

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