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दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार । अगर महाराजकी आज्ञा न होती तो इसकी इतनी भी क्रिया न होने पाती--बिना मन्त्र पढ़े ही उसे गड़हमें ढकेल ऊपरसे मिट्टी और ककड़ पत्थर डालकर गड़हेका मुँह बंद कर दिया जाता । परन्तु महाराजकी ही आज्ञा थी, इसलिये अपमृत्युका विचार छोड़ कुमारीके लिये जो कुछ उचित क्रिया शास्त्रमें कही गई है वह सब कर दी गई।
चन्द्र०--पर अब तो कोई क्रिया बाकी नहीं रही ?
पुरोहित-नहीं, अब कुछ भी बाकी नहीं रहा । और अब इससे अधिक उसकी क्रिया करना मानों उसे जान बूझकर नरकमें ढकेलना है।
चन्द्र०-भगवती वसुन्धरे ! ले, इसे अपने गोदमें सुलाले ! इसके सुन्दर और पवित्र शरीरसे सुन्दर और सुगन्धित फूल उत्पन्न हो ! रे दुष्ट पुरोहित ! याद रख, मेरी बहिन देवदूत होकर मोक्ष प्राप्त करेगी और तू पिशाच होकर स्मशानमें भटका करेगा ।
जयन्त--कौन ? मेरी प्यारी कमला ?
रानी-मधुर वस्तुओंका भोग करनेके लिये मधुर प्राणि ही योग्य है । ( लाशपर बहुतसे फूल छींटती है ) हाय ! सुकुमार कुमारी ! मुझे आशा थी कि तुम मेरे जयन्तकी स्त्री बनोगी; इसलिये मैं मन ही मन सोचती थी कि विवाह होनेपर मैं तुम्हारे कमरेको खूब सजा दूँगी, पर यह कैसे हो सकता था, क्योंकि मेरे भाग्यमें तो तुम्हारी कब्रको सजाना बदा था। __चन्द्र०--बहिन, जिस नीचकी नीचतासे तेरी तीव्र बुद्धि नष्ट हो गई उसका सत्यानाश हो ! भाइयो, जरा ठहरो, मुझे और एक बार अपनी प्यारी बहिनको गले लगा लेने दो, अभी मिट्टी न डालो।
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