Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 174
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार । १५५. मार इतना प्रेम था कि ऐसे ऐसे दस बीस नहीं - हज़ार भाईयों का प्रमे मिलकर भी उतना नहीं हो सकता । बोल, तू उसके लिये क्या करेगा ? वह पागल है I रा० - चन्द्रसेन जाने दो, रानी - ईश्वर के लिये, उसे क्षमा करो । जयन्त - अरे बोल, तू उसके लिये क्या करेगा ? रोएगा ! छड़ेगा ? खाना पीना छोड़ देगा ? छाती फाड़ डालेगा ? शराब पियेगा ? या घडियाल खायगा ? तू जो कुछ करेगा वह मैं भी करूँगा क्या तू यहां बच्चों की तरह रोने आया है ? या मुझे लज्जित करनेके लिये कब्र में कूदकर उसके विषयमें अपना असाधारण प्रेम दिखाने आया है ? अगर हिम्मत हो तो इस मुर्देके साथ तू भी अपनेको गढ़वाले और मैं भी गढ़वा लेता हूँ | तू कहता है कि मुझपर मिट्टीका पहाड़ खड़ा कर दो ; ठीक है, मैं भी कहता हूँ कि लाखों एकड़ जमीन की मिट्टी खोदकर मुझपर भी हिमालय पर्वत के बराबर ऊँचा मिट्टीका ढेर लगादो। अगर खाली बकबाद ही करना है, तो समझ रक्खो, मैं भी तुमसे कम बकवादी नहीं हूँ रानी—चन्द्रसेन उससे न बोलो, वह पगल हो गया है; और यह पागलपन कुछ देरतक योंही बना रहेगा । पर जब उसे सुत्र आजायगी तब तो वह गौके ऐसा सीधा हो जायगा और अपने किये पर भाष ही पछतायेगा | जयन्त - सुनो जी, मेरे साथ तुमने ऐसा नीच व्यवहार क्यों किया ? मैं तुम्हें भला आदमी समझकर बहुत चाहता था । पर माने बो, इन बातों से कोई लाभ होनेवाला नहीं | हज़ार चेष्टाएं करने पर भी कौआ सफेद नहीं हो सकता और बिल्ली और कुत्तेका स्वभाव कभी For Private And Personal Use Only

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