Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 178
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २] बलभद्रदेशका राजकुमार । इसके बाद क्या हुआ वह तो तुम्हें मालूम ही है । विशा० -- तो फिर बिचारे नय और विनयके माथे वह बला टल गई ! जयन्त मैं क्या करूँ ? उन्होंने स्वयं ही बड़े शौकसे यह काम उठाया था । मुझे उनकी मृत्युका बिल्कुल दुःख नहीं होता । जो जैसा करेगा वह वैसा ही भरपायेगा । सिंहों के बीच में अगर सियार कूद पड़े तो उसकी क्या दशा होगी ? बस, वही दशा उनकी भी समझ लो । विशा० - छि:, यह कैसा राजा ! १५९ जयन्त- क्या तुम उस कामको मेरा आवश्यक कर्त्तव्य नहीं समझते ? जिसने मेरे पिताको मारडाला, माका सतीत्व भ्रष्ट किया ; बीचही में कूदकर मेरी राज--गद्दीको हड़प लिया और मेरी सारी आशाओंको भङ्ग कर डाला ; इतना ही नहीं, किन्तु जिसने मेरी जान लेने की चेष्टा करने में भी बाकी न छोड़ा; ऐसे नीच हरामखोरके शरीर के इन हाथसे टुकड़े २ होना क्या योग्य नहीं है ? और अगर इस नराधमको संसार में और भी बुराइयाँ करने को जिन्दा छोड़ दूँ तो क्या मैं ईश्वर के यहाँ दण्ड पानसे कभी बच सकता हूँ ? 0 विशा -श्वेतद्वीपसे उस बातकी खबर उन्हें बहुत जल्दी ही मालूम होगी । जयन्त —– हाँ, थोड़े हीं दिनोंमें मालूम होगी । और इसी बीच यह काम हो जाना चाहिये | मनुष्यका जीवन तो एक पलभरका है ! पर, विशालाक्ष ! मुझे बड़ा दुःख है कि मैंने चन्द्रसेनसे बहुत बुरा बर्ताव किया । पिताके खूनपर मुझे क्रोध आवे और उसे न आवे; यह कहाँका न्याय है ? उसे अपने पिताके खूनपर क्रोध आना बहुत ही स्वाभाविक है । मैं उससे माफ़ी मांग लूंगा। पर, विशालाक्ष, सच कहता हूँ, कमलाके } For Private And Personal Use Only

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