Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १] बलभद्रदेशका राजकुमार । १४९ पड़ेगी। सचमुच, विशालाक्ष, इधर कई वर्षोंसे देख रहा हूँ, समय बड़ा विचित्र आ गया है ! किसान चाहता है दरबारीकी बराबरी करूँ, और दरबारी उसे तृणवत् समझता है । अच्छा क्याजी, तुम्हें यह काम उठाए कितने दिन हुए ? प० म०-यह काम मैं उसी दिनसे करने लगा जिस दिन हमारे परलोकवासी महाराजने शाकद्वीपके राजाको मार डाला। जयन्त-इस बातको कितने दिन हुए ? ५० म०-आप नहीं जानते ? एक अपढ़ गंवार भी कह सकता है कि यह घटना उसी दिन हुई थी जिस दिन हमारे जयन्त कुमारका जन्म हुआ। अब तो वे पागल हो गये हैं, इसलिये श्वेतद्वीप भेज दिये गये हैं। जयन्त--क्यौं क्यों ? श्वेतद्वीपमें क्यौं भेजे गये । प० म०-क्यों क्या ? पागल हो गये थे, इसलिये। वहाँ वे सुधर जायेंगे, और अगर वहाँ न भी सुधरे तो कोई हानि भी नहीं है। क्योंकि वहाँके लोग भी उन्हीके ऐसे पागल हैं । जयन्त-वे पागल कैसे हो गये ? प० म०---कहते हैं, बड़ी विचित्र तरहसे वे पागल हुए। जयन्त--कैसे ? प० म०-उनकी विचारशक्ति जाती रही । जयन्त--कहां, किसलिये ? ५० म०-यहां, और यहांके राजपदके लिये । मुझे यह पेशा उठाये कोई तीस वर्ष हो गये। जयन्त-क्यों जी, बिना सड़े गले मनुष्य कितने दिन जर्मनमें रह सकता है ? For Private And Personal Use Only

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