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दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार । १२९
चन्द्र०-शांत होकर क्या कमअसल कहलाऊँ ?
रा०-चन्द्रसेन ! ऐसा भयंकर विद्रोह क्यों कर रहे हो ? विषये, छोड़ दो उसे; मेरे लिये तुम बिल्कुल मत डरो । राजामें कुछ ऐसा ईश्वरीय तेज होता है कि राजविद्रोह सिवा उसे धमकानेके और उसका कुछ भी नहीं कर सकता । ( चन्द्रसेनसे ) हाँ, कहो, तुम ऐसे जामेके बाहर क्यों हुए जाते हो ? विषये ! उसे छोड़ती क्यों नहीं ? छोड़ दो। (चन्द्रसेनसे ) हाँ, चोलो, क्या पूछते हो ?
चन्द्रसेन-मेरे पिता कहाँ हैं ? रा०---मर गये। रानी-पर उसमें इनका कुछ भी दोष नहीं। रा०-उसे जो चाहे पूछने दो।
चन्द्र०-वे कैसे मर गए ? याद रहे मुझसे चालबाज़ी न चलेगी। आग लगे राजभक्ति में ! वचन और प्रतिज्ञा जलकर भस्म हों ! विवेक
और धर्मका एकदम नाश हो ! मैं कठिनसे कठिन दण्ड भोगनेके लिये तैय्यार हूँ । मैंने निश्चय कर लिया है कि चाहे जो हो---मृत्यु और स्वर्ग लोकको छोड़ मुझे नरकमें ही क्यों न जाना पड़े-पर मैं अपने पिताकी मृत्युका पूरी तौरसे बदला चुकाए बिना कभी न मानूंगा।
रा०-ठीक है; इसके लिये तुम्हें कौन रोक सकता है ? । । चन्द्र०-मेरी इच्छाके सिवा और कौन रोक सकता है ? और मेरे पास ऐसे २ साधन हैं कि जिनकी सहायतासे थोड़ेमें ही मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ।
रा०-चन्द्रसेन ! अपने पिताकी मृत्युका सच्चा हाल जान लोगे या उस अपराधमें शत्रु मित्र, अपराधी निरपराधी सभीको घसीटोगे ?
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