Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ जयन्त [ अंक ४ कम०-क्या तुम यह सोचते हो कि, वे फिर लौट आयेंगे ? अब कहाँ आते हैं ? अब नहीं आयेंगे नहीं आयेंगे; मर गए, अब नहीं आयेंगे ; उनके आनेकी आशा करना बिल्कुल भूल है ; वे नहीं आयेंगे, कभी नहीं आयेंगे । जाने दो, न आयेंगे नहीं सही । ईश्वर उनकी आत्माको वहीं शान्ति देगा । हे ईश्वर ! मुझपर, इनपर, सबपर दया करो । जाओ, अब ईश्वर तुम्हारा कल्याण करेगा । (जाती है) रा०-चन्द्रसेन ! अगर तुम मुझे अपने दुःखका साथी न बनाओगे, तो समझलो, तुम मेरे साथ बड़ा भारी अन्याय करोगे । अभी जाओ; और अपने कुछ विद्वान् और हितचिंतक मित्रोंको यहाँ लिवा लाओ। जिसमें वे ही सारा हाल सुनकर तुम्हारी हमारी बातोंका न्याव करें । अगर वे कह देंगे कि तुम्हारे पिताकी हत्यासे मेरा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कुछ भी सम्बन्ध है तो उसके दण्डम मैं अपना राज्य, अपना मुकुट और अपने प्राणतक तुम्हें देनेके लिये तैय्यार हूँ । परन्तु अगर जो मुझपर कोई अपराध साबित न हुआ तो तुम्हें उचित है कि शान्त भावसे मेरा सब कहना सुन लो । और फिर हम दोनों मिलकर तुम्होर पिताकी मृत्युका बदला लेनेकी चेष्टा करेंगे। चन्द्र--अच्छा, यही सही ; पर मुझे यह मालूम हो जाना चाहिये कि वे कैसे मारे गये, उनका क्रिया कर्म चुपके चुपके ही क्यों किया गया, उनके स्मरणार्थ कोई समाधि या मन्दिर क्यों नहीं बनवाया गया, और गोदान, शय्यादान, श्राद्ध क्रिया आदि धार्मिक काम क्यों नहीं किये गये ? रा०-तुम्हें सब कुछ मालूम हो जायगा । और जिस हत्यारेने For Private And Personal Use Only

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