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१३६ जयन्त
[अंक ४ ही कोई कन्या कर सकेंगी, वह कुमारी-पागल हो गई ! अस्तु, बदला चुकानेका भी अवसर आ जायगा ।
रा०-अब अधिक सोच करके अपनी नींदमें बाधा मत डालो; तुम मुझे इतना मूर्ख न समझ लेना कि घरमें आग लगी हुई देखकर भी उसे एक सृष्टिचमत्कार कहते हुए मैं पड़ा रहूँगा और आग बुझानेका कोई उपाय न सोचूँगा । विशेष बहुत जल्द ही तुम अपने कानों से सुन लोगे । मैं तुम्हारे पिताको बहुत प्यार करता था और उसी तरह अपने प्राणोंको भी प्यार करता हूँ। और इतनी बातोंसे, मुझे आशा है कि, तुम मेरा मतलब समझ गये होगे ।
(एक जासूस प्रवेश करता है । ) रा.-क्यों, क्या समाचार है ?
जासूस-महाराज ! जयन्त कुमारकी चिड़ियाँ हैं; यह महाराजके नाम है और यह रानी साहबके नाम ।
रा०-क्या जयन्तकी चिठियाँ हैं ? कौन लाया है ?
जासू०-कहते हैं, सरकार, मलाह ले आये हैं। मुझे तो कल्याणने दी; और उसे उन मल्लाहोंने दी थीं।
रा०-चन्द्रसेन ! देखो, सुनो इसमें क्या लिखा है । अच्छा, तुम जाओ। ( जासूस जाता है । राजा चिही पढ़ता है । )
" महाराजकी सेवामें निवेदन है कि आपके राज्यमें मैं बिना कपड़ोंके नङ्गा लाकर छोड़ा गया हूँ । यदि आज्ञा हो तो कल आपकी सेवामें उपस्थित होकर पहिले आपसे क्षमा प्रार्थना करके फिर मेरे एकाएक लौट आनेका अद्भुत समाचार निवेदन करूँगा।
'जयन्त।"
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