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जयन्त
[अंक ४ बीतने पाए कि डाकुओंके एक जङ्गी जहाजने हमारा पीछा किया । हमारे जहाजकी चाल बहुत ही धीमी हो जानेसे हमें विवश हो युद्ध करना पड़ा। मारते काटते ज्यों ही मैं उनके जहाज़पर चला गया त्यों ही उन्होंने अपने जहाजको हमारे जहाज़से दूर हटा लिया । इस तरह मैं अकेला ही उनका कैदी बन बैठा। उन्होंने मेरे साथ दयालु चोरोंका सा बर्ताव किया । परन्तु उन्होंने मुझपर जो दया की वह व्यर्थ नहीं, किसी खास मतलबसे की है, जिसे मैं भी किसी समय पूरा कर दूंगा । अस्तु, तुम ऐसा उपाय करना जिसमें मेरे भेजे हुए पत्र राजाको मिल जाय; और जहाँतक हो, बहुत शीघू आकर मुझसे मिल लेना । मुझे तुमसे कुछ बातें कहनी हैं जिन्हें सुनकर तुम्हारा कलेजा काँप उठेगा । ये भले आदमी तुम्हें मेरे पास ले आयेंगे । नय और विनय श्वेतद्वीप गये हैं; उनके विषयों भी तुमसे बहुत कुछ कहना है । इति शुभम् ।।
तुम्हारा प्रीति-पात्र,
जयन्त ।" अच्छा आओ, मैं तुम्हारे पत्रोंकी व्यवस्था किये देता हूँ । यह काम झटपट हो जाना चाहिये, क्योंकि तुम्हें मुझे वहाँ ले चलना होगा जहाँसे ये पत्र तुम ले आये हो। ( जाते हैं ।)
सातवाँ दृश्य । स्थान-राजभवनका एक कमरा ।
- : -- राजा और चन्द्रसेन प्रवेश करते हैं । राजा-तुम सारी बातें सुन चुके; अब तुम्हें चाहिये कि मुझे
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