Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 154
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ७ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । १३५ निर्दोषी जानकर अपना सच्चा मित्र समझो। और तुम्हें यह भी मालूम हो गया कि जिसने तुम्हारे पिताको मार डाला वह मुझे भी मारडालने की ताक में था । चन्द्र०हाँ, मालूम तो हो गया; पर जिसने यह घृणित और घोर काम किया उसे आपने बिना दण्ड दिये कैसे छोड़ दिया ? जिसे कुछ भी अकल होगी और अपनी रक्षाकी चिन्ता होगी उसके हाथों ऐसी भूल कभी नहीं हो सकती । 1 रा०-- ठीक है; पर इसके खास २ दो कारण हैं । तुम्हारी दृष्टिमें चाहे वे साधारण हों, पर मेरे लिये बड़े महत्वके हैं । पहिला कारण यह है कि रानी अर्थात् उसकी मा प्रायः उसीको देखकर अबतक जी रही है; और मेरे विषय में पूछो तो, चाहे यह मेरा सद्गुण हो या वह मेरी जान है—उसीपर मेरा जीवन और सुख निर्भर करता है; जैसे तारा अपनी तारका श्रेणीसे बाहर नहीं होता वैसे मैं भी उसकी इच्छाके बाहर कोई काम नहीं कर सकता । सर्वसाधारण के सामने उसपर अभियोग न चलाने का दूसरा कारण यह है कि इस देशकी प्रजा उसपर बड़ा प्रेम करती है । प्रीति के सामने लोग उसके अपराधोंको भूल जाते हैं; और जिस तरह नदी पत्थर के टुकड़ेको शिवलिङ्ग बना देती है उसीतरह ये लोग उसके बुरे कामों की भी प्रशंसा करने लगते हैं । ऐसे तूफ़ानमें निशानपर चलाया हुआ तीर कहीं उलटे मेरे ऊपर ही आकर न गिरे, इस इरसे मुझे इन झगड़ोंसे अलग ही रहना उचित जान पड़ा | चन्द्र० - और इस तरह मेरे सुयोग्य पिताकी मृत्यु हुई ! और मेरी प्यारी बहिन - जिसकी योग्यताकी और सुन्दरताकी बराबरी शायद For Private And Personal Use Only

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