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१४४ जयन्त
[अंक इसमें असल बात यह है कि अगर मैं जान बूझकर डूब जाऊँ तो यह एक काम होगा । कामके तीन भेद हैं:-करना, कराना और हो जाना। इस लिये वह जान बूझकर डूब गई। - दू० म०-नहीं, भाई, ऐसी बात नहीं है ; सुनो
प० म०-ज़रा ठहरो ; मुझे अपनी बात कह लेने दो । मान लो, यहाँ है पानी; अच्छा; और यहाँ है आदमी ; अच्छा, देखो; अगर यह आदमी पानीके पास जाय और अपने आपको डुबा ले, तो उसकी इच्छा हो या न हो-वह वहां गया सही ; अच्छा, फिर देखो ; अगर पानी उसके पास जाय, और उसे डुबो दे, तो यह बात नहीं होती कि उसने जान बूझकर अपनेको डुबो लिया। इसलिये, जो जानबूझकर आत्महत्या नहीं करेगा वह अपनी मृत्युके लिये दोषी नहीं हो सकता।
दू० म०-पर, क्या यह कायदा है ?
प० म०–हाँ, पंचका ऐसा ही कायदा है। - दू० म०-तुम्हें सच सच कह दूँ ? अगर यह बड़े घरानेकी औरत न होती तो इसे शास्त्रोक्त विधिसे गाइनेकी आज्ञा कभी न मिलती ।
प० म०-बहुत ठीक कहते हो ; और यह बड़े शरमकी बात है कि अमीरोंको-चाहे वे कैसा ही बुरेसे बुरा काम क्यों न करें-उन्हें हर बातके लिये शास्त्राज्ञा मिल जाती है । चलरे फावड़े ! (खोदता है ) अच्छा बताओ पेसराज, लोहार और बढ़ई इन तीनोंमें सबसे अधिक टिकनेवाला काम किसका होता है ?
दू० म०-फाँसी देनेकी टिख्टी बनाने वालेका ; क्योंकि वह
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